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________________ अ० १३ गाथा ३० ७६२ उत्तराध्ययन-सूची ४० २६-३१ यज्ञ-प्रमुख की क्षमा याचना मुनि द्वारा तिन्दुक यक्ष का परिचय यज्ञ प्रमुख द्वारा पुनः क्षमा याचना ३४-३५ यज्ञ प्रमुख का हरिकेशी श्रमण को भिक्षादान दान के समय देवों द्वारा दिव्य वर्षा दिव्य वर्षा से ब्राह्मणों को आश्चर्य ३८-३६ भाव शुद्धि के बिना बाह्य शुद्धि की विफलता के सम्बन्ध में हरिकेशी श्रमण के विचार आत्म शुद्धि एवं श्रेष्ठ यज्ञ के सम्बन्ध में यज्ञ प्रमुख की जिज्ञासा ४१-४७ हरिकेशी द्वारा अध्यात्म स्नान एवं अध्यात्म यज्ञ का प्रतिपादन तेरह वाँ चित्तसंभूति अध्ययन सम्भूत ने हस्तिनापुर में निदान किया, नलिनी गुल्म विमान में उत्पन्न हुअा वहाँ से च्यव-मर-कर कम्पिलपुर में चुलिनी की कुक्षी से ब्रह्मदत्त की उत्पत्ति कम्पिलपुर में ब्रह्मदत्त की उत्पत्ती क- पुरिम तालपुर में चित्त की उत्पत्ति ख- चित्त का दीक्षित होना चित्त और ब्रह्मदत्त संभूत] का कम्पिलपुर में मिलना चित्त मुनि द्वारा पूर्व जन्म के वृत्तान्तों का वर्णन ६-१४ ब्रह्मदत्त की चित्त मुनि से प्रार्थना १५-२६ क- चित्त मुनि का ब्रह्म दत्त को उपदेश ख- मृत्यु को सिंह की उपमा ग- अशरण भावना का उपदेश २७-३० क- ब्रह्मदत्त की भोगों में आसक्ति Jain Education International · For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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