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________________ १५८ स्थानांग-सूची १२६ श्रु०१, अ०३. उ०२ सूत्र १६० अग्रमहिषियों की तीन परिषद् ख- शेष भवनेन्द्रों की परिषदायें-क-के समान ख- सर्व व्यंतरेन्द्रों " " ङ- सर्व वैमानिकेन्द्रों १५५ क- तीन याम ख- केवली कथित धर्म का श्रवण-यावत्-छ सूत्र मतिज्ञान-यावत् केवल ज्ञान की प्राप्ति तीन याम में होती है ग- तीन वय घ- ख-के समान-तीन वय में होती है क- तीन प्रकार की बोधी ख- " " के बुद्ध ग- " " का मोह " के मूर्ख १५७ क- घ-तीन प्रकार की प्रवज्या तीन प्रकार के निग्रंथ संज्ञोपयोग रहित हैं ख- " " " सहित और रहित भी हैं १५६ क- नवदीक्षित को छेदोपस्थापनीय चारित्र देने का समय तीन प्रकार का ख- तीन प्रकार के स्थविर १६० क- मन के तीन विकल्प. तीन प्रकार के पुरुष ख- गमन क्रिया अतीत काल " वर्तमान" " " " भविष्य " ग- गमन क्रिया का निषेध, तीन प्रकार के पुरुष अतीत काल वर्तमान " ५८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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