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०१, अ०५, उ० १ सू०३६६
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स्थानांग सूची
छ - शब्दादि ५ के ज्ञान से सुगति, शब्दादि ५ के अज्ञान से दुर्गति
३६१ क- प्राणातिपात आदि ५ से दुर्गति
ख- प्रणातिपात विरमण आदि ५ से सुगति
३६२ पांच प्रतिमा
३६३ क- पांच स्थावर काय
ख -
कायाधिपति
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३६४ क - अवधि ज्ञानी पांच कारणों से क्षुब्ध होता है ख- केवल ज्ञानी पांच कारणों से क्षुब्ध नहीं होता
३६५ क - चौवीस दंडकों में पांच वर्ण, पांच रस
३६८
ख- पांच शरीर के वर्ण, रस
ग- स्थूल शरीरों के वर्ण, गंध, रस और स्पर्श
३९६ क- प्रथम और अंतिम जिनके युग में पांच दुर्गम हैं
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ख- मध्यम बावीस सुगम हैं ग- भ. महावीर ने निर्ग्रथों को पांच स्थान की आज्ञा दी है
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संव व्यवस्था
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३६७ क - श्रमण निग्रंथ की महा निर्जरा और महाप्रयाण के पांच कारण
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पांच प्रकार की भिक्षा की आज्ञा दी है।
तपश्चर्या की
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के आहार की
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३६६ क- आचार्य-उपाध्याय के गण में पांच विग्रह स्थान
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विग्रह स्थान
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आसनों के लिए
- सांभोगिक साधमि को विसंभोगी करने के पांच कारण
ख- साधर्मिक निर्ग्रथ को पारंचिक प्रायश्चित्त देने के पांच कारण
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