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स्थानांग-सूची
१६२ श्रु०१, अ०५ उ०१ सू० ३६० अनुराधा पूर्वाषाढ़ा और उत्तराषाढ़ा के चार-चार तारे चार स्थानों से पापकर्म के पुद्गलों का त्रैकालिक चयन
उपचयन
३८७
बंध
उदीरणा वेदना
निर्जरा ३८८ पुद्गल
चार प्रदेश वाला स्कंध अनंत , प्रदेशावगाढ पुद्गल ,, ,, समय की स्थितिवाले पुद्गल
., गुण काले-यावत्-चार गुण रूखे पुद्गल सूत्र संख्या ४६
पंचम स्थान
प्रथम उद्देशक ३८६ क- पांच महाव्रत
ख- , अणुव्रत ३६० क-ग-पांच-वर्ण, रस, कामगुण घ- शब्दादि ५ में जीवों की आसक्ति
" " का राग " " , की मूच्र्छा " , , , गृद्धि " " " , लीनता
से , का विनाश ङ- शब्दादि ५ का असम्यग्ज्ञान जीवों के अहित-यावत्-संसार
वृद्धि के लिये च- शब्दादि ५ का सम्यग्ज्ञान जीवों के हित-यावत्-सिद्धि के लिए
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