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श०१६ ३०३ प्र०३४
४-१८
१६
२०
१
- २१
२२
२३-२७
-२८-३१
३४
३८३
उन्नीसवाँ शतक
प्रथम लेश्या उद्देशक
छ प्रकार की लेश्या
द्वितीय गर्भ उद्देशक
कृष्णले श्यावाला कृष्णलेश्यावाले गर्भ को उत्पन्न करता है।
तृतीय पृथ्वी उद्देशक
बनस्पतिकायिकों में शरीर, आहार, स्थिति में भिन्नता, शेष अग्निकाय के समान
पृथ्वीकायिक आदि की अवगाहना का अल्प-बहुत्व
पृथ्वीकायिक आदि परस्पर सूक्ष्मता
पृथ्वीकायिक आदि की परस्पर स्थूलता पृथ्वीकाय के शरीर का प्रमाण
३२
३३ क - पृथ्वीकाय के शरीर की सूक्ष्म अवगाहना
ख- चक्रवर्ती की दासी द्वारा पृथ्वीपिंड पीसने का उदाहरण पृथ्वीकाय की वेदना, वृद्धपर तरुण पुरुष के प्रहार का दृष्टान्त
भगवती-सूची
क- राजगृह
ख- पृथ्वीकाय के जीवों के प्रत्येक शरीर का बंध
पृथ्वीकायिक जीवों की निम्नांकित विषयों से विचारणालेश्या, दृष्टि, ज्ञान, उपयोग, आहार, स्पर्श, प्राणातिपातयावत्-मिथ्यादर्शनशल्य, उत्पाद, स्थिति समुद्घात, उद्वर्तना क- अकायिक जीवों की पृथ्वीकायिकों के समान विचारणा ख- स्थिति में भिन्नता
क- अग्निकायिकों की पृथ्वीकायिकों के समान विचारणा ख- उपपात स्थिति और उद्वर्तना में भिन्नता
ग- वायुकायिकों में समुद्घात की विशेषता, शेष अग्निकाय
के समान
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