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________________ वक्ष० ४ सूत्र १०३ ७०६ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति-सूची च- इन ग्रहों के देवों की राजधानियां मेरु से दक्षिण में ३०० क- कूटशाल्मलि पीठ का स्थान ख. देवकुरु देव और उसकी स्थिति ग- शेष वर्णन-जम्बूसुदर्शन पीठ के समान गरुड़ देव वर्णन पर्यन्त 10१ क- विद्य त्प्रभ वक्षस्कार पर्वत का स्थान ख- विद्युत्प्रभ देव और उसकी स्थिति ग- शेष वर्णन--माल्यवन्त पर्वत के समान घ- विद्य त्प्रभ वक्षस्कार पर्वत पर नो कूट ङ- दो कूटों पर देवियां, शेष कूटों पर देवता च- इनकी राजधानियाँ मेरु से दक्षिण में छ- विद्युत्प्रभ नाम होने का हेतु ज- विद्यत्प्रभ देव और उसकी स्थिति क- विद्युत्प्रभ नाम शाश्वत नाम १०२ क- दक्षिण-उत्तर के आठ विजय आठ राजधानियाँ वक्षस्कार पर्वत अन्तर नदियाँ कूटाकूट देव १०३ क- मेरु पर्वत का स्थान " की ऊँचाई के मूल का उद्वेध और विष्कम्भ के धरणितल का और ऊपर का विष्कम्भ " के भूल धरणितल और ऊपर की परिधि " की पद्मवर वेदिका और वनखण्ड " के ऊपर चार वन ग- , Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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