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________________ भगवती-सूची २८८ श०३ उ०२ प्र०५६ २८-२६ शकेन्द्र और ईशानेन्द्र का एक-दूसरे के कार्य में परस्पर सहयोग ३०-३१ शकेन्द्र और ईशानेन्द्र के विवादों का सनत्कुमारेन्द्र द्वारा निर्णय ३२-३३ सनत्कुमार भवसिद्धिक-यावत्-चमर है ३४ सनत्कुमार देवेन्द्र की स्थिति सनत्कुमार का महाविदेह में जन्म और निर्वाण द्वितीय चमरोत्पात उद्देशक ३६ क- राजगृह में भ० महावीर और गौतम तथा परिषद् ख- भ० महावीर के सामने चमरेन्द्र का नाट्य प्रदर्शन और पुनः स्वस्थानगमन ३७.३८ असुरों का रत्नप्रभा के बीच में निवास स्थान ३६-४१ क- सातवीं पृथ्वी पर्यंत असुरों के जाने का सामर्थ्य ख. तृतीय पृथ्वी पयंत असुरों का सकारण गमन ४२-४४ क- असुरों का नंदीश्वर द्वीप में गमन ग- असुरों का अरिहंतों के पंच कल्याण प्रसंगों में तिर्यग् लोक में आगमन . ४५-४७ क- असुरों का उप्रलोक में अच्युत देव लोक पर्यंत गमन सामर्थ्य ख- असुरों का सौधर्म पर्यन्त सकारण गमन ४८-५० क- असुरों द्वारा वैमानिक देवों के रत्नों का अपहरण ख- रत्नों के अपहरण से असुरों के शरीर में व्यथा ग- वैमानिक अप्सराओं के साथ असुरों का ऐच्छिक स्नेह संबंध अनन्त उत्सर्पिणी-अवपिणी के पश्चात् असुरों का सौधर्म पर्यन्त गमन अरिहन्त आदि की निश्रा से असुरों का सौधर्म आदि में गमन महधिक असुरों का सौधर्म में गमन चमरेन्द्र का सौधर्म में गमन चमरेन्द्र की वैक्रिय ऋद्धि का चमरेन्द्र के शरीर में पुनः प्रवेश ५६ क- चमरेन्द्र का पूर्वभव Y MOK Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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