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________________ पद २२ सूत्र ११ प्रज्ञापना-सूची ख- चौवीस दण्डकों में ६ छानस्थिक समुद्घात १७-२२ क- समुद्घात के समय पुद्गलों से व्याप्त और स्पृष्ट क्षेत्र ख- पुद्गलों से व्याप्त और स्पृष्ट होने का काल ग- पुद्गलों के निकालते समय होनेवाली क्रियायें २३ केवली समुद्घात से निर्जरित पुद्गलों की सूक्ष्मता और लोक व्यापकता २४ क- छद्मस्थ द्वारा निर्जरित पुद्गलों का न देख सकना ख- न देख सकने का कारण क- गंध पुद्गलों का उदाहरण ख- केवलो समुदघात के बिना भी निर्वाण क- आयोजीकरण के समय ख- केवली समुद्घात के समय ग- प्रत्येक समय में की जानेवाली क्रिया का वर्णन केवली समुद्घात के समय योंगों का व्यापार केवली समुद्घात के पश्चात् योग व्यापार का निषेध __ केवली समुद्घात के पश्चात् सिद्ध पद २६ क. सयोगी को सिद्ध पद की प्राप्ति नहीं ख- योग निरोध का क्रम, सेलेशी अवस्था का काल परिमाण ग- अयोगी को सिद्धपद की प्राप्ति घ- सिद्धों के शरीरादि न होने का कारण ङ- अग्नि दग्ध बीज का उदाहरण १. अात्मा को मोक्षाभिमुख करने के लिये शुभ योग-व्यापार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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