Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ प्रथम प्रज्ञापनापद] एगो तत्थ सिय संखेज्जा सिय असंखेज्जा सिय अणंता। एएसि णं इमानो गाहाओ अणुगंतव्वानो। तं जहा-- कंदा य 1 कंदमूला य 2 रुक्खमूला इ 3 यावरे / गुच्छा य 4 गुम्म 5 बल्ली य 6 वेणुयाणि 7 तणाणि य 8 // 107 // पउमुप्पल 6-10 संघाडे 11 हढे य 12 सेवाल 13 किण्हए 14 पणए 15 / अवए य 16 कच्छ 17 भाणी 18 कंडुक्केक्कूणवीसइमे 16 // 108 / / तय-छल्लि-पवालेसु य पत्त-पुष्फ-फलेसु य / मूलऽग्ग-मज्झ-बीएसु जोणी कस्स य कित्तिया // 10 // से तं साहारणसरीरबादरवणस्सइकाइया। से तं बादरवणस्सइकाइया। से तं वणस्सइकाइया / से तं एगिदिया। [55-3] उनमें से जो पर्याप्तक हैं, उनके वर्ण की अपेक्षा से, गन्ध की अपेक्षा से, रस की अपेक्षा से और स्पर्श की अपेक्षा से हजारों प्रकार (विधान) हो जाते हैं। उनके संख्यात लाख योनिप्रमुख होते हैं / पर्याप्तकों के आश्रय से अपर्याप्तक उत्पन्न होते हैं / जहाँ एक (बादर)पर्याप्तक जीव होता है, वहाँ (नियम से उसके आश्रय से) कदाचित् संख्यात, कदाचित् असंख्यात और कदाचित् अनन्त (प्रत्येक) अपर्याप्तक जीव उत्पन्न होते हैं। (साधारण जीव तो नियम से अनन्त ही उत्पन्न होते हैं / ) ___ इन (साधारण और प्रत्येक वनस्पति-विशेष) के विषय में विशेष जानने के लिए इन (आगे कही जाने वाली) गाथानों का अनुसरण करना चाहिए। वे इस प्रकार हैं गाथार्थ--] 1. कन्द (सूरण आदि कन्द), 2. कन्दमूल और 3. वृक्षमूल (ये साधारण वनस्पति-विशेष हैं / ) 4. गुच्छ, 5. गुल्म, 6. वल्ली और 7. वेणु (बांस) और 8. तृण (अर्जुन आदि हरी घास), 6. पद्म, 10. उत्पल, 11. शृगाटक (सिंघाड़ा), 12. हढ (जलज वनस्पति), 13. शैवाल, 14. कृष्णक, 15. पनक, 16. अवक, 17. कच्छ, 18. भाणी, और 16. कन्दक्य (नामक साधारण वनस्पति) // 108 / / इन उपयुक्त उन्नीस प्रकार की वनस्पतियों की त्वचा, छल्ली (छाल), प्रवाल (कोंपल), पत्र, पुष्प, फल, मूल, अग्र, मध्य और बीज (इन) में से किसी की योनि कुछ और किसी की कुछ कही गई है / / 109 / / यह हुआ साधारणशरीर वनस्पतिकायिक का स्वरूप / (इसके साथ ही) उस (पूर्वोक्त) वादर बनस्पतिकायिक का वक्तव्य पूर्ण हुआ। (साथ ही) वह (पूर्वोक्त) वनस्पतिकायिकों का वर्णन भी समाप्त हुआ; और इस प्रकार उन एकेन्द्रियसंसारसमापन्न जीवों की प्ररूपणा पूर्ण हुई। विवेचन--समस्त वनस्पतिकायिकों की प्रज्ञापना-प्रस्तुत इक्कीस सूत्रों (सू. 35 से 55 तक) में वनस्पतिकायिक जीवों के भेद-प्रभेदों तथा प्रत्येकशरीर बादरवनस्पतिकायिकों के वृक्ष, गुच्छ आदि सविवरण बारह भेदों तथा साधारणशरीर बादरवनस्पतिकायिकों की विस्तृत प्ररूपणा की गई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org