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६२ वर्ष बताया है। तिलोय पण्णती' में इन तीनों का केवलिकाल पृथक २ न बताकर पिण्ड रूप से ६२ वर्ष लिखा है। तिलोयपणत्तिकार ने इन तीनों केवलियों को अनबद्ध केवली की संज्ञा देते हए अन्तिम केवली श्री धर के कंडलगिरी पर सिद्ध होने का उल्लेख किया है। इस प्रकार का उल्लेख तिलोय पण्णत्ति और उत्तरवर्ती काल के श्रुतंस्कन्ध को छोड़कर सम्पूर्ण प्राचीन जैन वाङमय में अन्यत्र दृष्टिगोचर नहीं होता।
दिगम्बर परम्परा के ही वीर कवि रचित अपभ्रंश भाषा के जम्बू सामिचरिउ तथा पं० राजमल्ल रचित 'जम्बू चरित्र'५ (संस्कृत) में इन्द्रभूति गौतम, सुधर्मा इन दोनों का सम्मिलित रूप से १८ वर्ष और जम्बू का समय १८ वर्ष उल्लिखित करते हुए इन तीनों केवलियो का केवलिकाल कुल मिलाकर केवल ३६ वर्ष ही बताया गया है।
___ इस प्रकार उपरिलिखित उद्धरणों के अनुसार श्वेताम्बर परम्परा में वीर नि० सं० १ से ६४ तक कुल ६४ वर्ष का केवलिकाल माना गया है । जबकि दिगम्बर परम्परा के ऊपर लिखे विभिन्न ग्रन्थों में केवलिकाल विपयक तीन प्रकार की भिन्न-भिन्न मान्यताएं उपलब्ध होती हैं। एक मान्यता केवलिकाल ६४ वर्ष का, दूसरी ६२ वर्ष का और तीसरी केवल ३६ वर्ष का ही बताती है। इस प्रकार के विभेदात्मक उल्लेखों के उपरान्त भी दिगम्बर परम्परा में ग्राज जो सर्वसम्मत मान्यता प्रचलित है, उसके अनुसार केवलिकाल ६२ वर्ष माना जाता है।
केवलिकाल विषयक इस साधारण मतभेद के अतिरिक्त श्वेताम्बर और दिगम्बर इन दोनों परम्पराओं में दूसरा मान्यता भेद भगवान महावीर के प्रथम पट्टधर के सम्बन्ध में है। जहां श्वेताम्बर परम्परा में प्रार्य सुधर्मा को भगवान् महावीर का प्रथम पट्टधर माना गया है, वहां दिगम्बर परम्परा में इन्द्रभूति गौतम को। भगवान महावीर के धर्म संघ के प्राचार्यों की जितनी भी पट्टावलियां उपलब्ध हैं, उनमें मे श्वेताम्बर परम्परा की सभी पट्टावलियां प्रार्य सुधर्मा से और दिगम्बर परम्परा की सभी पट्टावलियां इन्द्रभूति गौतम से प्रारम्भ होती हैं। दोनों परम्परागों में इस बात पर तो मतैक्य है कि जिस रात्रि में भगवान का निर्वागा हुमा उसी रात्रि में प्रथम गणधर इन्द्रभूति को केवलज्ञान की उपलब्धि हुई परन्तु श्वेताम्बर परम्पग के मभी प्रामाणिक ग्रन्थों में प्रार्य सुधर्मा को भगवान् महावीर का प्रथम पदघर और दिगम्बर परम्परा के ग्रन्थों में इन्द्रभूति गीतम को भगवान् का प्रथम पट्टधर एवं तत्पश्चात् सुधर्मा को द्वितीय पट्टधर माना गया 'तिलोय पण्णति, महा० ४, गा. १४७८ २ वही, गा. १४.७६ 3 ब्रह्म हेमचन्द्ररचित श्रुतस्कन्ध, गा. ६८ ४ जम्बुमामिचरि उ, वीर कवि चिन (मम्पादक डा. बी. पी. जैन) १० : २३ " जम चरित्र, राजमल्ल रचित, सर्ग १२,लो. १०६, ११०, ११२. १२० और १२१
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