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१८. प्रार्य नागहस्ती] दशपूर्वधर-काल · प्रार्य नागहस्ती
५५५ नागहस्ती का सत्ताकाल समसामयिक सिद्ध होने के साथ-साथ जय धवलाकार का वह कथन भी संगत संभव हो सकता है, जिसमें उन्होंने कहा है कि यतिवृषभ ने आर्य मंखु और नागहस्ती- इन दोनों के चरणों में बैठकर कसायपाहड़ की गाथाओं का अवधारण किया।
___तिलोयपण्णत्ती' भी यतिवृषभ की रचना है । तिलोयपण्णत्ती में वीर नि० सं० १००० तक के काल में हुए राजाओं का उल्लेख उपलब्ध होता है। इस उल्लेख को आधार बनाकर कतिपय विद्वान् यतिवृषभ का समय वीर निर्वाण से १००० वर्ष पश्चात् का मानते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि कालगणना की शृंखला की कड़ियों को जोड़ने के लिये उक्त गाथानों में से अनेक गाथाएं कालान्तर में अन्य विद्वानों द्वारा प्रक्षिप्त की गई हों। प्रायः सभी विद्वानों की यह मान्यता है कि तिलोयपण्णत्ती में प्रक्षिप्त गाथाओं का बाहुल्य है।
यद्यपि यतिवृषय ने आर्य मगू और नागहस्ती का अपनी चूरिण में कहीं नामोल्लेख नहीं किया है तथापि जयधवलाकार ने इन दोनों प्राचार्यों की स्तुति करते हुए स्पष्ट रूपेण यह लिखा है कि यतिवृषभ ने आर्य मंक्षु और नागहस्ती से कसायपाहुड़ का ज्ञान प्राप्त किया। जयधवताकार के इस कथन को प्रामाणिक न मानने का कोई कारण प्रतीत नहीं होता। ऐसी स्थिति में एक बड़ा प्रश्न उपस्थित होता है कि क्या आर्य यतिवृषभ विक्रमीय प्रथम शताब्दी के प्रथम चरण में विद्यमान थे ? यह प्रश्न गहन शोध की अपेक्षा रखता है। प्राशा है इतिहास के विद्वान् इस पर प्रकाश डालेंगे।
आपके शिष्यों में आर्य पादलिप्त बड़े ही प्रभावक प्राचार्य हुए हैं । संक्षेप में यहां उनका परिचय दिया जा रहा है :
प्रार्य पादलिप्त ____ आर्य खपुट की तरह आर्य पादलिप्त भी बड़े प्रतिभाशाली प्राचार्य माने गये हैं। कोशला नगरी के महाराज विजयवर्मा के राज्य में फुल्ल नाम का एक बुद्धिमान और दानवीर श्रेष्ठी रहता था। उसकी पत्नी का नाम प्रतिमाना था। बह रूप, शील और गुरण की अाधारभूमि होकर भी पुत्र रहित थी। किसी ने उसे परामर्श दिया कि वैरोट्या देवी की पाराधना की जाय तो पुत्रलाभ हो सकता है । इष्टसिद्धि के लिए उसने भी तप, नियम के साथ वैरोट्या का समाराधन कर उसे प्रसन्न किया। देवी ने प्रत्यक्ष होकर कहा - "बोलो ! मुझे किस लिये याद किया है ?"
श्रेण्ठिपत्नी बोली - "पुत्र के लिए।" ।
देवी ने कहा - "विद्याधर वंश में प्रार्य नागहस्ती नाम के प्राचार्य है, जो इस समय यहां प्राये हुए हैं । उनका चरणोदक पिया जाय तो तुम्हें पुत्र की प्राप्ति हो सकती है।"
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