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नागार्जुन वाचना० ] सामान्य पूर्वधर - काल : प्राचार्य नागार्जुन
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प्राचार्य ने मार्ग-दर्शन करते हुए कहा - " इस प्रौषधि को चावल के धोवन प्रौर कांजी में घिस कर लेप किया जाय तो गगन में सरलता से गमन किया जा सकता है ।" तदनन्तर आचार्य ने उसे यह भी शिक्षा दी कि वह सदा भौतिक विभूतियों के प्रलोभनों से दूर रह कर प्रन्तर्मन से वीतराग मार्ग का श्राराधन करता रहे, इसी में उसकी श्रात्मा का सच्चा कल्याण निहित हैं ।
उपरोक्त उल्लेख में, नागार्जुन ने पादलिप्त से विद्या ग्रहरण की, यह तो बताया गया है, पर उसने कब और किसके पास दीक्षा ग्रहण की यह नहीं बताया गया है । यहाँ यह विचारणीय है कि प्रा० पादलिप्त का समय वीर नि० सं० ५६७ से पूर्व का है।
नंदीसूत्र की स्थविरावली में प्राचार्य हिमवन्त के पश्चात् नागार्जुन का उल्लेख किया गया है। तदनुसार चूरिंगकार जिनदास द्वारा नंदी चूरिंग में प्रोर हिमवन्त स्थविरावली के अंत में स्पष्ट रूप से प्रापको हिमवन्त का शिष्य बताया गया है । प्राचार्य देवद्ध ने नन्दी स्थविरावली में निम्नलिखित शब्दों में आपकी स्तुति की है :
मिउमद्दव संपन्ने, श्रारणुपुव्विवायगत्तणं पत्ते । मोहसुयसमायारे, नागज्जुरगवायए ( गं ) वंदे ||३६||
अर्थात् - जो सरलता श्रादि मनोज्ञ गुरणों से संपन्न हैं और जिन्होंने क्रमश: योग्यता का विकास करते हुए वाचक पद की प्राप्ति की, उन प्रोधश्रुत श्रर्थात् विधिमार्ग की समाचररणा करने वाले वाचक नागार्जुन को वन्दन करता हूँ । गाथा में प्रयुक्त 'प्रागुपुव्वि' पद वस्तुतः विशिष्ट रूप से विचारणीय है, जो अनुक्रम से वाचक पद की प्राप्ति बताता है। यहां अनुक्रम शब्द से श्रुतग्रहण का क्रम- पौर लघुवृद्ध की अपेक्षा बताई गई है । चूर्णिकार ने भो इसी अर्थ को
मान्य किया है ।"
प्रानुपूर्वी से वाचक पद प्राप्त करने की बात का अभिप्राय तत्कालीन प्राचार्य परम्परा के क्रम को देखने से जाना जा सकता है । इतिहास के प्राप्त उल्लेखानुसार प्रार्य स्कन्दिल, श्रार्य हिमवान् और श्रार्य नागार्जुन समकालीन मोर वाचनाचार्य माने गये हैं । नन्दी स्थविरावली में नागार्जुन को हिमवन्त क्षमाश्रमरण का पश्चाद्वर्ती आचार्य बताया गया है, जब कि युगप्रधान पट्टावली श्रोर दुष्षमाकाल श्रमरणसंघस्तोत्र में नागार्जुन को प्रार्य सिंह के पश्चात् युगप्रधान माना गया है । निर्दिष्ट काल श्रीर क्रम को ध्यान में रख कर विचारने से ऐसा प्रतीत होता है कि वीर नि० सं० ८२६ में युगप्रधान प्रार्य सिंह के स्वर्गवास काल में प्रार्य स्कन्दिल को विशिष्ट प्रतिभा सम्पन्न और बड़ा मान कर वाचक पद प्रदान किया गया और उसी समय युवा मुनि नागार्जुन युगप्रधानाचार्य नियुक्त किये गये ।
"धारणुपुवि" - सामाइप्रादि सुतग्गहणेणं कालतो य पुरिम परियायत्तणेण पुरिसारणुपुव्वितो य वायगतरणं पत्तो । [ नंदी चूरिंग (पुण्य विजयजी) पृ० १० गा० ३५ ]
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