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जैन धर्म का मौलिक इतिहास -द्वितीय भाग [समुद्रगुप्त इलाहाबाद स्थित उपरिचर्चित स्तम्भलेख से यह प्रमाणित होता है कि समुद्रगुप्त युद्धों में सबसे आगे रहकर युद्ध करने वाला महान् योद्धा,' कवि', संगीतज्ञ, दयालु और लोकोत्तर गुणों से सम्पन्न था।
यद्यपि इलाहाबाद स्थित उपरोक्त स्तम्भलेख में इस प्रकार का कोई उल्लेख नहीं है कि समुद्रगुप्त ने कोई अश्वमेघ यज्ञ किया अथवा नहीं, तथापि प्रभावती गुप्ता के पूना - दानपत्र, स्कन्दगुप्त के अभिलेख तथा समुद्रगुप्त के उन अश्वमेधिक सिक्कों से, जिन पर एक पोर यूप के सम्मुख अश्व का चित्र, दूसरी ओर महारानी का चित्र क्रमशः "अश्वमेध पराक्रमः" और "राजाधिराजःपृथिवीमवित्वा दिवं जयति अप्रतिवार्यवीर्यः" - इन पदों के साथ अंकित हैं, यह स्पष्टत: सिद्ध होता है कि समुद्रगुप्त ने अश्वमेध यज्ञ किये थे।
समुद्रगुप्त ने सुदूरवर्ती एवं सीमावर्ती राज्यों को विजित करने के पश्चात् पुनः उन्हें पराजित राजाओं को लौटाकर उनके साथ जो उदारतापूर्ण व्यवहार किया, उससे उसका यश चारों ओर फैल गया। शत्रुओं के प्रति इस प्रकार के सुन्दर व्यवहार से यह प्रमाणित होता है कि वह बड़ा दूरदर्शी, स्थायी शान्ति का इच्छुक और सबके साथ सच्चा सौहार्द रखने के लिये समुत्सुक था।
समुद्रगुप्त के कुल मिलाकर आठ प्रकार के सिक्के उपलब्ध होते हैं, जो सभी विशुद्ध स्वर्ण के हैं। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि समुद्रगुप्त के शासनकाल में भारत कितना समृद्धिशाली देश था ।
अनुमान किया जाता है कि समुद्रगुप्त ने वीर नि० सं० ८६२ से ६०२ तक शासन किया। ' (क) संग्रामेषु स्वभुजविजिता नित्यमुच्चापकारी। (ख) ....परशुशरशंकुशक्तिप्रासासितोमरभिन्दिपालनाराचवंतस्तिकाद्यनेकप्रहणविरूढाकुल
- व्रणशतांकशोभासमुदयोपचितकान्ततरवर्मणः....। २ प्रध्येयः सूक्तमार्गः कविमतिविभवोत्सारणं चापि काव्यं ।
[वहीं] 3 निशितविदग्धमतिगान्धर्वललितः वीडितत्रिदशपतिगुरुतुम्बुरुनारदादेः । [वही] ४ ....अनेकभ्रष्टराज्योत्सन्न राजवंशप्रतिष्ठापनोद्भूतनिखिलभुवनविचरणशान्तयशसः.. (वही) ५ सुचरितस्तोतव्यानेकाद्भुतोदारचरितस्य,... ६ ...तस्य सत्पुत्रो महाराज श्री चन्द्रगुप्तः तस्य सत्पुत्रोऽनेकाश्वमेधयाजी लिच्छिविदौहित्रो महादेव्यां कुमारदेव्यामुत्पन्नो महाराजाधिराज श्री समुद्रगुप्तः ......
[प्रभावती गुप्ता का पूना - दानपत्र] ......न्यायगतानेकगोहिरण्यकोटिप्रदस्य चिरोत्सन्नाश्वमेधाहतु: महाराजश्रीगुप्तप्रपौत्रस्य महाराज श्री घटोत्कचपौत्रस्य महाराजाधिराज श्री चन्द्रगुप्तपुत्रस्य लिच्छविदौहित्रस्य महादेव्यां कुमारदेव्यामुत्पन्नस्य महाराजाधिराज श्री समुद्रगुप्तस्य पुत्र:....
[प्राचीन भारतीय अभिलेखों का अध्ययन खण्ड २] .
[वही]
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