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साध्वी-परम्परा
सामान्य पूर्वधर-काल : देवद्धि क्षमाश्रमण
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महान् आत्माएं समय-समय पर समाज में उभर कर मानवता को सच्चे सुख की ओर अग्रसर कर सकती हैं ।
साध्वी ईश्वरी
(वीर की छठी शती का अंतिम दशक). संसार वस्तुतः दुःखों का अथाह सागर है, जिसका कोई प्रोर है न छोर । एक भी ऐसा मानव नहीं; जिसे जीवन में दुःखों ने नहीं घेरा हो, संकटों ने नहीं सताया हो । गर्भ-काल से लेकर मृत्यु पर्यन्त प्रत्येक मानव छोटे-बड़े किसी न किसी प्रकार के दुःखों से घिरा ही रहता है। दारुण दुःख की घड़ियां बीत जाने पर मानव दुःख के दिनों को भूल कर पुनः मृगमरीचिका तुल्य सुख की खोज में दौड़ लगाता है, पुनः दुःख पा घेरते हैं, कुछ समय पश्चात् फिर उन्हें भूल जाता है। प्रत्येक मानव के जीवन में यही क्रम प्रायः मृत्यु पर्यन्त चलता रहता है। लाखों में से विरला ही कोई मानव ऐसा होता है, जो अपने ऊपर आये हुए दुःख से शिक्षा ग्रहण कर सदा-सर्वदा के लिये दुःख से छुटकारा पाने का सही और सच्चा प्रयास करता है।
साधिका ईश्वरी की गणना उन विरलों की श्रेणी में शीर्ष स्थान पर की जा सकती है।
भीषण दुष्कालजन्य अन्नाभाव की बीभत्स संकटापन्न स्थिति में भूख से तड़प-तड़प कर मरने के स्थान पर सोपारक नगर के ईभ्य (अतुल सम्पदाशाली) जिनदत्त और उसकी पत्नी ईश्वरी ने अपने चार पुत्रों और पूरे परिवार सहित विषमिश्रित भोजन कर स्वेच्छा-मृत्यू का वरण करने का निश्चय किया। एक लाख मुद्राएं व्यय करने पर भो जिनदत्त अपने परिवार के अन्तिम (विषमिश्रित) भोजन के लिये बड़ी कठिनाई से केवल दो अंजलिभर अन्न जुटा पाये। ईभ्य-पत्नी ईश्वरी ने उस अन्न को पीसकर अपने परिवार के लिये भोजन बनाया। उस भोजन में विष मिलाने के लिये ज्योंही ईश्वरी ने सद्यःप्राणहारी कालकूट की पुड़िया खोली, त्योंही युगप्रधानाचार्य वज्रसेन ने वहां पदार्पण किया। आसन्नमृत्यु के विकट क्षरणों में मुनिदर्शन को अपना परम पुण्योदय मान ईश्वरी ने हर्षगद्गद् हो मुनि को भक्ति सहित भावपूर्ण त्रिधा वन्दन किया। .
श्रेष्ठिपत्नी के हाथ में कालकूट विष देख आर्य वज्रसेन ने कारण पूछा। श्रेष्ठिपत्नी के मुख से वास्तविक स्थिति से अवगत होते ही प्राचार्य वज्रसेन को अपने गुरु द्वारा की गई उस भविष्यवाणी का स्मरण हो पाया, जिसमें प्रार्य वज्रसेन को बताया गया था कि जिस दिन तुम लक्षपाक अर्थात् १ लाख मुद्रामों के मूल्य के भोजन में गृहस्वामिनी को विष मिलाते हुए देखो उसी क्षण समझ लेना कि दूसरे दिन दुष्कालजन्य अन्नाभाव की दुःखावह स्थिति सुनिश्चित रूप से समाप्त हो जायगी।
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