Book Title: Jain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Author(s): Hastimal Maharaj
Publisher: Jain Itihas Samiti Jaipur

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Page 982
________________ ८५२ श्रुतस्कन्ध-ब्रह्महेमचन्द्र विरचित, माणिक्य समायांग सूत्र-टीका अनुवाद, पू. घासीलालजी । चन्द्र दि. जैन ग्रन्थमाला - म., प्र. भा. श्वे. स्था. जैन शास्त्रोद्धार श्रु तावतार इन्द्रनन्दी कृत समिति, राजकोट श्रीमद्भागवत महा पुराण, गीता प्रेस समवायांग, प्र. रायबहादुर धनपत सिंह गोरखपुर सर्वार्थ सिद्धि-देवनन्दि पूज्यपाद (जिनेन्द्रबुद्धि) शान्तिनाथ चरित्र रचित, प्रकाशक-सखाराम नेमिचन्द्र जैन ग्रन्थमाला सोलापुर षट्खण्डागम-धवला टीका (पूर्ण), प्र.-जैन साङ्गधर पद्धति संस्कृति संरक्षक संघ, शोलापुर सुत्तपाहुड़-प्रा. कुन्दकुन्द प्रणीत, षट् प्राभृतादि संबोष प्रकरण, प्रा. हरिभद्र, प्रकाशक संग्रह, प्रकाशक-माणिकचन्द्र दि. जैन जैन ग्रन्थ प्रकाशन सभा, अहमदावाद ग्रन्थमाला बम्बई स्कन्द पुराण । सूत्रकृतांग, प्रा. जवाहर लाल जी म. द्वारा स्कंध गुप्त का जूनागढ शिलालेन्त्र अनूदित, प्रकाशक-शम्भूमल गंगाराम स्कंध गुप्त का भितरी का स्तम्भलेख मूथा, बंगलोर : स्थानांग सूत्र घासी लाल जी म. द्वारा संपादित, सुत्तागमे प्रथमो अंसो सं. पुष्फभिक्ख, प्र. भा. श्वे. स्था. जैन शास्त्रोद्वार समिति, गम प्रकाशक समिति, रेल्वे रोड, राजकोट द्वारा प्रकाशित गुड़गांव छावनी, १९५३ ई. स्थानांग सूत्र-टीका अभयदेव मूरि, प्रकाशक Sacred Books of the East, Vol. 22 by Hermapo Jacobi राय धनपत सिंह समंत भद्र-पंडित जुगल किशोर मुख्त्यार हरिवंश पुराण, प्रा. जिनसेन (पुन्नाट संघीय) समदर्शी प्राचार्य हरिभद्र- पं. सुखलाल संघवी - प्रगीत सं. पं. पन्नालाल जैन साहित्याचार्य डी. लिट., प्रकाशक राजस्थान प्राच्य प्र. भारतीय ज्ञानपील, काशी, सन् १९६२ विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर १९३३ ई. हरिवंश पुगण-कृष्ण द्वैपायन, समय प्राभृत कुन्दकुन्दाचार्य, प्रथम संस्करण हरिपेरण द्वारा कोशाम्बी में उकित करवाया ई. १९१४ हुआ समुद्र गुप्त का (इलाहाबाद स्थित) समय प्राभृतम् और प्राभृत संग्रह, प्र. स्तम्भ लेख माणिकचन्द्र दि जन ग्रन्थमाला, हिमवन्त स्थविरावली (हस्तलिखित), मुनिश्री (पुष्प १७), बम्बई कल्याण विजयजी से प्राप्त सयवायांग अभय देवीया टीका. History of the Guptas, by Dandekar. विशेष-सूची में दिये गये ग्रन्थों के अतिरिक्त उपलम्ब सम्पूर्ण भागम साहित्य और भनेक प्रन्यों से महायता ली गई है। उन सब की मूत्री देना संभव नहीं। . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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