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जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [साध्वी-परम्परा - रुद्रसोमा ने और रुद्रसोमा द्वारा निर्मित प्रेरणाप्रद भूमिका के फलस्वरूप राजपुरोहित सोमदेव तथा उनके परिवार के अनेक मुमुक्षुत्रों ने प्राचार्य रक्षित के पास पंचमहाव्रत स्वरूप अरणगार-धर्म की दीक्षा ग्रहण की।
आर्या रुद्रसोमा ने कठोर तपश्चरण करते हए अनेक वर्षों तक विशुद्ध संयम की साधना की। आर्या रुद्रसोमा के दोनों ही जीवन, गार्हस्थ्य जीवन और साध्वी-जीवन, मानवमात्र के लिये बड़े प्रेरणादायक हैं। वंश-विस्तार और अपने वंश की परम्परा को अक्षुण्ण बनाये रखने अर्थात् वंश का नाम स्थायी रखने की लोकरूढ़ बात का स्व-पर-कल्याण की तुलना में रुद्रसोमा के समक्ष कोई महत्व नहीं था। वह मानव-जीवन की सफलता, वंश-विस्तार में नहीं अपितु स्व-परकल्याण में मानती थी। प्रारम्भिक जीवन से ही जैन धर्म में प्रगाढ़ प्रास्था रखने वाली दृढ़ सम्यक्त्वधारिणी रुद्रसोमा की यह सुनिश्चित धारणा थी कि जो मानव अध्यात्म-विद्या का अध्ययन कर साधना-पथ पर स्वयं अग्रसर होता हुअा और अन्य लोगों को साधनापथ पर अग्रसर करता हुआ जन-जीवन में आध्यात्मिक चेतना के जागरण से जितना अधिक स्व तथा पर के कल्याण में निरत रहता है, वस्तुतः वह उतना ही अधिक अपने मानव-जीवन को सफल बनाता है। कितने उच्चकोटि के विचार थे रुद्रसोमा के ? उसने अपने इन विचारों को अपने जीवन में अक्षरशः ढाला। उसके वंश का नाम आगे चलेगा अथवा नहीं, इस बात की किंचित्मात्र भी चिन्ता न करते हुए उसने अपने दोनों पुत्रों में उच्चकोटि के. संस्कार डाल कर उन्हें आध्यात्मिक साधनापथ के पथिक और पथप्रदर्शक बनने तथा अपना एवं प्रौरों का कल्याण करने की प्रेरणा दी। रुद्रसोमा की प्रेरणा का ही प्रतिफल था कि बालक रक्षित आगे चलकर युगप्रधानाचार्य प्रार्य रक्षित बना। आर्य रक्षित ने जन-जन के मन में आध्यात्मिक चेतना उत्पन्न कर स्व-पर का कल्याण एवं जिनशासन की सेवा करने में जो उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की, उसका मूलतः श्रेय रुद्रसोमा को ही है।
यद्यपि सोमदेव और रुद्रसोमा की संतति, वंश-परम्परा पार्य रक्षित एवं फल्गुरक्षित के दीक्षित हो जाने के कारण आगे नहीं चली किन्तु जैन इतिहास में प्रयोगों के पृथक्कर्ता के रूप में आर्य रक्षित के नाम के साथ-साथ पुरोहित सोमदेव और मुख्यतः रुद्रसोमा का नाम अमर हो गया। रुद्रसोमा के समय से लेकर प्राज तक एक तरह से असंख्य महिलाएं हुई हैं, जिनकी संतति-वंशपरम्परा चली। उनमें से आज का मानव-समाज किसी का नाम नहीं जानता परन्तु लगभग दो हजार वर्ष व्यतीत हो जाने पर भी आज तक श्रद्धालुओं एवं साधकों द्वारा बड़ी श्रद्धा के साथ रुद्रसोमा का नाम स्मरण किया जाता रहा है और भविष्य में भी सहस्रों शताब्दियों तक भक्ति के साथ स्मरण किया जाता रहेगा। प्रातः स्मरणीया रुद्रसोमा के उद्दात्त एवं अनुकरणीय जीवन से प्राज का मानवसमाज, मुख्यतः महिला-समाज यदि थोड़ी बहुत भी प्रेरणा ले तो भौतिकता की प्रचण्ड भट्टी में जलते हुए आज के मानवसमाज को राहत देने वाली, शान्ति पहुंचाने वाली
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