Book Title: Jain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Author(s): Hastimal Maharaj
Publisher: Jain Itihas Samiti Jaipur
View full book text
________________
उत्तरज्झयणाई (श्रुत.) -६८८ कल्याणवाद पूर्व - १६८ उपकेशगच्छपट्टावली-३७६, ३८०, कल्प किरणावली ५१६, ५.२० उपदेशपद - ४०५
कल्पचणि - ३७५,४५३, ४५४ उपदेशमाला-दोषट्टी वृत्ति - १८८, २०६, कल्पभाष्य - ३६६
कल्प व्यवहार - ६१७ उपधान श्रुत - ७५, ९
कल्प सुरोषिका -८, १३, १४, ३८, ५०८ उपसर्गहर स्तोत्र - ३२५
कल्प सूत्र -५, २७, ३२४, ३२५, ३७२, उपासक दसा सूत्र - ३५, ३६, ७३, १४६ ४१०,४६३, ५१६, ५२०, ६६२, उबसग्गहर स्तोत्र - ३३३, ३६२, ३७२, ७५३,७७० ____३७४, १५२, १७४, १७७, ६८७, कल्पसूत्रस्थविरावली - ६१, ३२४, ४२, १८८
४६३, ४६४, ४७३-४७५, ५६५, उबवाइय (प्रागम) - १३६, ६८५
५८२, ५६७, ५६८, ६४४, ६४५,
६४८, ६७५, ६७६, ६८१-६८४, ऋग्वेद - ७, ४६
६६२. ऋषिभाषित अध्ययन - १५७, ३२५ कल्पान्तर्वाच्यानि - २०८ ऋषिमण्डल स्तोत्र - ५९७
कल्पावतंसिका (उपांग)- ६८८
कल्पिका-६८९ एपिटोम - ४२१, ४२६
कल्याणफलवियाक - ३४ एरण की प्रशस्ति - ६६५
कल्याण मन्दिर स्तोत्र -५२६
कषायपाहड़ - ६४, ५३४, ५३३, ५५५, पोष-नियुक्ति - ३६१, ३६८, ६८६, ६९०
७०२, ७२३, ७२४ प्रोष (सूत्र) - ३६६
कषाय-प्रामृत - ७५४ (प्रो)
कहावली-३०, ३६, ३७, ५०५, ५०६, प्रोपपातिक सूत्र – २४६, ६८८
५१३, ५४२, ६५१, ६५२ कारपसइन्स्कृपशनं इन्डिकेरम् - ६७२
कालसप्तिका सूत्र - ५१६ . कथासरित्सागर - ५३६, ५४२, ५४६, ५४७
कालिक सूत्र - १३४, ३६४, ३६६, ५६५ कप्पियाकप्पियं (श्रुत) ६८७
कालिक श्रुत -- ६४४, ६५०, ६७८, ६८७ कप्पिया-६८९
कालिक उत्कालिक मूत्र-६८९ कप्पवर्डसिया (श्रुत) ६८८
काव्य मीमांसा - ६६८ . कम्मपडि - ७२४
काव्यालंकार - ६५६ कर्मग्रन्थ - ६८१
काष्ठासंघस्यगुर्वावली - ७२५, ७३३ कर्मग्रन्थ स्वोपज्ञ वृत्ति - ६८१
किताबबुलहिन - ५५० . कर्मप्रकृतिपद - ७०४
कुन्दकुन्द प्राभत संग्रह -७६०, ७६१, ७६३ कर्म प्रवादपूर्व - २६, १.६७, १७५, ६०० कुरल (ग्रंथ).-७६१ कर्म विपाक - १२५
कुवलयमाला-७१२, ७१४ . कर्मवेद बन्ष पद -७०४
केवली-भुक्ति - ६५, ६१७
(मो)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 961 962 963 964 965 966 967 968 969 970 971 972 973 974 975 976 977 978 979 980 981 982 983 984