________________
जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने भी अपने अनेक पुत्रों में से चन्द्रगुप्त द्वितीय को सभी दृष्टियों से सुयोग्य समझ कर उसका अपने उत्तराधिकारी के रूप में चयन किया था। चन्द्रगुप्त द्वितीय के मयुरा स्थित शिलालेख तथा स्कन्दगुप्त के बिहार एवं भितरी के शिलालेखों में चन्द्रगुप्त द्वितीय के लिए क्रमशः 'तातपरिग्रहीतेन' और तातपरिगृहीत'- पदों के प्रयोग को देखकर कुछ विद्वानों की इस धारणा के लिये किंचित्मात्र भी अवकाश नहीं रह जाता कि समुद्रगुप्त और चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासन काल के बीच में दो-तीन वर्ष के थोड़े से समय के लिये रामगुप्त जैसे अकर्मण्य एवं क्लीब शासक का शिथिल शासन रहा था। उपरि चचित तीन शिलालेखों में से प्रथम में जो 'तातपरिगृहीतेन और शेष दो में 'तातपरिगृहीत' पद का प्रयोग चन्द्रगुप्त द्वितीय के लिये किया गया है, उससे निर्विवाद रूपेण यह प्रमाणित हो जाता है कि चन्द्रगुप्त द्वितीय को स्वयं उसके पिता ने गुप्त साम्राज्य का स्वामी बनाया था।
गुप्तवंशी सम्राटों के सभी शिलालेखों एवं अभिलेखों में तथा द्वितीय चन्द्रगुप्त-विक्रमादित्य की पुत्री प्रभावती गुप्ता (वाकाटक नृपति रुद्रसेन द्वितीय की महारानी तथा वाकाटक नृपतियों दिवाकर सेन तथा दामोदर सेन की ई० सन् ३६५ से ४१५ तक अभिभाविका) के पूना के दानपत्र में जो गुप्त राजवंशी राजामों की वंशावली दी गई है, उनमें रामगुप्त का नामोल्लेख तक नहीं किया गया है। इन सभी अभिलेखों में गुप्तसम्राट समुद्रगुप्त के पश्चात् दितीय चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य को ही उसका उत्तराधिकारी गुप्त सम्राट् बताया गया है।'
समुद्रगुप्त के पश्चात् यदि रामगुप्त नामक कोई गुप्त राजा गुप्त साम्राज्य के सिंहासन पर बैठा होता. तो कोई कारण नहीं था कि प्रभावती गुप्ता अपने पूना वाले दानपत्र में और स्कन्दगुप्त अपने भितरी के स्तम्भलेख में समुद्रगुप्त के पश्चात् तथा चन्द्रगुप्त (द्वितीय) से पहले रामगुप्त के नाम का उल्लेख नहीं करते। साहित्यिक उल्लेखों की अपेक्षा शिलालेख, स्तम्भलेख, ताम्रपत्राभिलेख अधिक ' (क) सिद्धम् । सर्वराजोन्छेत्तुः पृथिव्यामप्रतिरथस्य चतुरुदधिसलिलास्वादितयशसो धन
दवरुणेन्द्रान्तकसमस्य कृतान्तपरशोः न्यायागतानेकगोहिरण्यकोटिप्रदस्य चिरोत्सना. श्वमेधाहतुंः महाराज श्रीगुप्तप्रपौत्रस्य महाराज श्री घटोत्कचपौत्रस्य महाराजाधिराज श्री चन्द्रगुप्तपुत्रस्य लिच्छिवीदौहित्रस्य महादेव्यां कुमार देव्यामुत्पन्नस्य महाराजाधिराज श्री समुद्रगुप्तस्य पुत्रः तत्परिगृहीतो महादेव्यां दत्तदेव्यामुत्पन्नः स्वयं चाप्रतिरथः परम भागवतो महाराजाधिराज श्री चन्द्रगुप्तः तस्य पुत्रः तत्पादानुध्यातो महादेव्यां ध्रुवदेव्यामुत्पन्नः परम भागवतो महाराजाधिराज श्री कुमारगुप्तः तस्य.... [स्कन्दगुप्त का भितरी (जिला गाजीपुर उत्तरप्रदेश) का स्तम्भलेख] .......श्री समुद्रगुप्तः तत्सत्पुत्रतत्पादपरिगृहीत पृथिव्यामप्रतिरथः सर्वराजोच्छेत्ता चतुरुदधिसलिलास्वादितयशानेकगोहिरण्यकोटिसहस्रप्रद परम भागवतो महाराजाधिराज श्री चन्द्रगुप्तः तस्य दुहिता धारण सगोत्रा नागकुलसंभूतायां श्री महादेव्या कुबेरनागायामुत्पन्नोभयकुलप्रलंकारभूतात्यन्तभगवद्भक्ता वाकाटकानां , महाराजा श्रीरुद्रसेनस्याग्रमहिषी युवराज श्री दिवाकर सेन जननी श्री प्रभावति गुप्ता...'
[प्रभावती गुप्ता का पूना (महाराष्ट्र) का दानपत्र]
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org