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जैन धर्म का मोलिक इतिहास--द्वितीय भाग [देवद्धि का० रा० स्थिति वाहम्यामवनि विजित्य हि जितेप्वार्तेषु कृत्वा दयाम् ।
नोसिक्तो न च विस्मितः प्रतिदिनं संवर्द्धमानद्युतिः
गीतैश्च स्तुतिभिश्च वन्दकजनो यं प्रापयत्यार्यताम् ।।७।। स्कन्दगप्त की प्रजा किस प्रकार आदर्श मानवता से ओतप्रोत, धर्मनिष्ठ, सुखी और समृद्ध थी, इसका चित्रण जूनागढ़ के शिलालेख में निम्नलिखित शब्दों में किया गया है :---
सस्मिन्नृपे शासति नैव कश्चित्, धर्माद्व्यपेतो मनुजः प्रजासु । प्रार्तो दरिद्रो व्यसनी कदर्यो, दण्ड्यो न वा यो भृशपीडितःस्यात् ।।
राजा और प्रजा में इस प्रकार के आदर्श गुणों की समानता विश्व के इतिहास में बहुत कम दृष्टिगोचर होती है।
.. वीर नि० सं० ६८२ से ६६४ तक के अपने १२ वर्ष के शासनकाल में स्कन्दगप्त ने अनेक युद्धों में शत्रयों को पराजित कर विक्रमादित्य की उपाधि धारण की। स्कन्दगुप्त के शासनकाल में जनकल्याण के अनेक कार्य किये गये।
__ भारतीय इतिहास में स्कन्दगुप्त का नाम अमर रहेगा। हूणों जैसी प्राततायी बर्बर जाति की मदभरी शक्ति को विचूरिणत कर स्कन्दगुप्त ने न केवल भारत अपितु सम्पूर्ण एशिया महाद्वीप के निवासियों का बड़ा उपकार किया। यदि स्कन्दगप्त ने हरगों की उन्मत्त अजेय शक्ति को नष्ट न किया होता तो हरणों के अत्याचारों से संत्रस्त हो सम्पूर्ण एशिया त्राहि-त्राहि की पुकार के साथ बड़े लम्बे समय तक कराहता रहता।
समुद्रगुप्त के शासनकाल से स्कन्दगुप्त के शासनकाल तक, अर्थात् वीर०नि० सं०८६२ से ६६४ तक गुप्त साम्राज्य का उत्कर्ष काल रहा। स्कन्दगुप्त के निधन के पश्चात् गुप्त साम्राज्य का अपकर्ष प्रारम्भ हो गया। स्कन्दगुप्त के कोई पुत्र नहीं था अतः उसकी मृत्यु के पश्चात् उसका भाई पुरुगुप्त गुप्त-साम्राज्य का अधिकारी बना।
संभवतः डेढ़ वर्ष तक ही पुरुगुप्त का राज्य रहा। वीर नि० सं० ६६६ में पुरुगुप्त की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र नरसिंह गुप्त अयोध्या के सिंहासन पर बैठा। वीर. नि० सं० १००० में नरसिंह गुप्त की भी मृत्यु हो गई और उसके पश्चात् कुमार गुप्त (द्वितीय) गुप्त-राज्य का स्वामी बना। वीर नि० सं० १००० तक हुए गुप्त राजवंश के राजामों की
तिविक्रम सहित नामावली नाम :
अनुमानित शासनकाल :१. श्री गुप्त
वीर नि० सं०७६७ से ८०७ २. घटोत्कच
" " " ८०७ से ८४६ ३. चन्द्रगुप्त प्रथम
" " " ८४६ से ८६२
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