Book Title: Jain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Author(s): Hastimal Maharaj
Publisher: Jain Itihas Samiti Jaipur

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Page 910
________________ • जैन धर्म का मोनिक इतिहास-वितीय भान साम्बी-परम्परा के समक्ष प्रस्तुत किये, जो माज भी धूमिकामों के रूप में विद्यमान है। तदनन्तर साध्वी यक्षा पुनः पूर्ववत् अपनी बहिनों के साथ स्व-पर-कल्याण एवं जिनशासन की. सेवा के कार्यों में निरत हो गई। . इस प्रकार मार्य संभूति विजय के प्राचार्य-काल में दीक्षित होकर मार्या यक्षा, यक्षदिन्ना, भूता, भूतदिना, सेणा, वेणा मोर रेणा ने साध्वीसंघ में अपना विशिष्ट स्थान प्राप्त किया। यक्षा प्रादि सातों साध्वियों का संयम-काल पार्य संभूति विजय, प्रार्य भद्रबाहु मोर मार्य स्थूलभद्र के प्राचार्यत्वकाल में कितना कितना रहा तथा ये प्रवर्तिनी मादि पद पर रहीं. अथवा नहीं, इस सम्बन्ध में प्रमाणाभाव के कारण कुछ भी कहना वस्तुतः कल्पना की उडान के अतिरिक्त और कुछ न होगा । यक्षा प्रादि इन बालब्रह्मचारिणी, महामेधाविनी एवं विशिष्ट श्रुतसम्पन्ना महासतियों से युगयुगान्तर तक साध्वीमंडल ही नहीं, समस्त जैन संघ गौरवानुभव और प्रेरणा प्राप्त करता रहेगा। मार्या पोइरणी (अनुमानतः वी• नि० सं० ३०० से ३३० के पास पास)' वाचनाचार्य मार्य बलिस्सह के समय में साध्वीमुख्या विदुषी महासती पोइणी मोर ३०० अन्य निर्गन्थिनी साध्वियों की विद्यमानता का उल्लेख हिमवन्त स्थविरावली में उपलब्ध होता है। कलिंग चक्रवर्ती महामेघवाहन खारवेल द्वारा वीर निर्वाण की चतुर्थ शताब्दी के प्रथम चरण में कुमारिगिरि पर प्रायोजित भागमपरिषद में वाचनाचार्य प्रार्य बलिस्सह एवं गणाचार्य मार्य सुस्थित सुप्रतिबद्ध की परम्परामों के ५०० श्रमणों के विशाल मुनि-समूह के साथ प्रार्या पोइणी मावि ३०० निर्गन्य श्रमणियों के उपस्थित होने का स्पष्ट उल्लेख दृष्टिगत होता है।' . इस प्रकार के प्राचीन उल्लेखों से यह भलीभांति सिद्ध होता है कि श्रुतरक्षा एवं संघहित हेतु प्रायोजित वाचनामों, विचारणामों अथवा परिषदों में साधुसंघ के समान साध्वीसंघ और यहां तक कि श्रावक-श्राविकामों के संघों का भी सर्वथा पूर्ण सहयोग प्राप्त किया जाता था। ' "एसो एवं जिणसासणपभावगो भिक्खुराय रिणवो........."वीरामोणं तीसाहिय तिसय बासेसु विक्कतेसु सम्ग पत्तो।"-हिमवन्त स्पविरावली के इस उल्लेख के उनुसार खारवेल का अंतिम समय वीर नि० सं० ३३० सिड होता है । महासती पोइरणी भी खारवेल द्वारा पायोजित मागम-परिषद् में सम्मिलित थीं मतः उनका भी यही समय मनुमानित किया . जाता है। -सम्पादक २ ....... तेणं भिक्खुरायणिवेणं जिणपवयण संगहठं जिणधम्म वित्थरह्र य संपह रिणम्य समणाणं रिणग्गंठाणं णिग्गंठीणं य एगा परिसा तस्य कुमारिपम्बय-तित्यम्मि मेलिया ।......."मज्जा पोइणीयाईणं प्रज्जाणं णिग्गंठीणं तिन्नि सया समेया । [हिमवन्त स्थविरावली, अप्रकाशित] - - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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