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साध्वी-परम्परा] सामान्य पूर्वधर-काल : देवद्धि क्षमाश्रमण
७६३ मुरुण्ड राज ने अपनी बहिन से कहा - "सहोदरे ! इस अगाध धर्यशालिनी सर्वसहा, समर्था साध्वी के पास तुम प्रवजित हो सकती हो। वस्तुतः इस साध्वी का धर्म श्रेष्ठ और सर्वज्ञ-प्ररूपित धर्म है।" ____ अपने भाई की अनुमति प्राप्त होते ही मुरुण्ड-राजकुमारी ने उस तपोपूता, कृषकाया जैन-साध्वी के चरणों पर अपना मस्तक रखते हुए उनसे विधिवत् श्रमणी-धर्म की दीक्षा ग्रहण की। सहस्रों शिर उस अतुल आत्मबलशालिनी तपोकृषा अज्ञातनामा साध्वी और उनकी सद्यः दीक्षिता शिष्या मुरुण्ड कुमारी के चरणों में भूक गये । सहस्रों कण्ठों से उद्घोषित जयंघोषों द्वारा सर्वसम्मानिता वे दोनों साध्वियां- गरुणो और शिष्या जन-जन के मन में श्रद्धा का अजस्र स्रोत प्रस्फुटित करती हुई उपाश्रय में पहुंचीं। .
__ साहस, सहनशीलता, शान्ति एवं साधना की प्रतिमूर्ति उन गुरुणीजी और उनकी शिष्या साध्वी मुरुण्डराज कुमारी का नाम लम्बे प्रतीत की अनेक परतों के नीचे छुपा होने के कारण आज भले ही पुस्तकों, पन्नों, पत्रों एवं अभिलेखों में अंकित न हो पर उनके यत्किचित् इतिवृत्त को पढ़ते ही उनका प्रति सौम्यपति शान्त चित्र प्रत्येक श्रद्धालु साधक के हृदय में अंकित हो, उसे साधनापथ पर अग्रसर होने की प्रेरणा देता रहता है।
साध्वी सोमा
(वीर को छठी शती) यदि किसी परिवार में धर्म के प्रति आन्तरिक एवं अनन्य निष्ठा रखने वाला एक भी सदस्य हो तो वह सम्पूर्ण कुटुम्ब का सही अर्थ में उद्धार कर देता है-तिरा देता है। साध्वी बनने से पूर्व का रुद्रसोमा का गार्हस्थ्य जीवन इस तथ्य का एक प्रादर्श प्रतीक माना जाता है।
रुद्रसोमा दशपुर के वेदवित् विद्वान् सोमदेव की पत्नी थी। सोमदेव दशपुर के महाराजा के राजपुरोहित थे। उनका राजपरिवार, राजसभा, समाज पौर समस्त प्रजावर्ग में बड़ा सम्मान था। रुद्रसोमा जैन धर्म में प्रगाढ़ निष्ठा रखने वाली श्रद्धालु श्रारिका थी।
राजपुरोहित-पत्नी रुद्रसोमा ने वीर नि. सं. ५२२ में एक महान भाग्यशाली पुत्र मार्य रक्षित को जन्म दिया। मागे चल कर आर्य रक्षित जैन धर्म का परमोद्योत करने वाले महान् प्रभावक युग-प्रधानाचार्य हुए। रुद्रसोमा के दूसरे पुत्र का नाम फल्गुरक्षित था।
राजपुरोहित सोमदेव ने शिक्षा योग्य वय में बालक रक्षित की शिक्षा की समुचित व्यवस्था की। प्रारम्भिक शिक्षा की समाप्ति पर सोमदेव ने अपने पुत्र रक्षित को उच्च शिक्षा दिलाने हेतु पाटलिपुत्र भेजा। पाटलिपुत्र में अनेक ' "एस धम्मो सवन्नु दिट्ठो” – वृहत्कल्प भाष्य, भाग ४, पृ. ११२३
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