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जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [साध्वी-परम्परा को अपना पुत्र घोषित कर उसका लालन-पालन एवं शिक्षण-दीक्षण किया। उन्होंने अपने (दत्तक) पुत्र का नाम मणिप्रभ रखा।
भाई की हत्या करवाने पर भी जब अवन्तीवर्द्धन को धारिणी नहीं मिली तो उसका सम्मोह दूर हमा। अपने प्रति निकृष्ट दुष्कृत्य पर उसे प्रान्तरिक पश्चात्ताप हुप्रा। अपने छोटे भाई राष्ट्रवर्धन के पुत्र प्रवन्तीसेन को राज्यसिंहासन पर आसीन कर अनुमानतः वीर नि० सं० २४ में प्रवन्तीवर्द्धन ने श्रमण-धर्म की दीक्षा ग्रहण कर ली।
कौशाम्बीपति अजितसेन की मृत्यु के पश्चात् मणिप्रभ कौशाम्बी के राजसिंहासन पर बैठा। इस प्रकार राष्ट्रवर्धन और देवी धारिणी का बड़ा पुत्र अवन्तीसेन अवन्ती का और छोटा पुत्र मणिप्रभ कौशाम्बी का शासन करने लगा। कौशाम्बी और अवन्ती के राजवंश में चण्डप्रद्योत के समय से ही परस्पर शत्रुता चली आ रही थी। प्रवन्तीसेन ने भी किसी छोटे-बड़े कारण को लेकर कौशाम्बी पर आक्रमण कर दिया। दोनों ओर से युद्ध की पूरी तैयारियां हो चुकी थीं, भीषण नरसंहार प्रारम्भ होने ही वाला था, उस समय अहिंसा की प्रतिमूर्ति साध्वी धारिणी ने मणिप्रभ और अवन्तीसेन के पास जाकर उन्हें बताया कि वे दोनों एक दूसरे के सहोदर हैं, मणिप्रभ छोटा और अवन्तीसेन बड़ा। वस्तुस्थिति का बोध होते ही दोनों भाई बड़े प्रेम से मिलकर एक दूसरे को मानन्दाश्रुओं से सिंचित करने लगे। साध्वी धारिणी द्वारा किये गये बीच-बचाव के फलस्वरूप भीषण नरमेध होते होते बच गया।
महत्तरा विजयवती और साध्वी विगतमया
(वीर नि० सं० ४४ के लगभग) प्रावश्यक चूरिण में महत्तरा विजयवती की शिष्या विगतभया का उल्लेख , पाता है। जिस समय अवन्तीसेन ने कौशाम्बी पर प्राक्रमण किया, उससे थोड़े समय पहले साध्वी विगतभया द्वारा कौशाम्बी में अनशन किये जाने का विवरण आवश्यक चूरिण में किया गया है। चूणि में यह भी बताया गया है कि साध्वी विगतभया द्वारा संलेषना पूर्वक अनशन किये जाने के अवसर पर कौशाम्बी के श्रावक-श्राविका संघ ने अनेक दिनों तक महोत्सव का आयोजन कर उनके प्रति अपूर्व संम्मान प्रकट किया। इस उल्लेख के अतिरिक्त रिण में महत्तरा का और उनकी शिष्या का और कोई परिचय नहीं दिया है। पालक ने वीर नि० सं० २० में दीक्षा ली, उसके लगभग ४ वर्ष पश्चात् अवन्तीवर्द्धन और धारिणी ने दीक्षा ग्रहण की। इस प्रकार वीर नि० सं० २४-२५ में धारिणी ने मणिप्रभ को जन्म दिया। जिस समय अवन्तीसेन ने मणिप्रभ के साथ यूद्ध करने के लिये कौशाम्बी पर माक्रमण किया, उस समय मणिप्रभ की वय कम से कम २० वर्ष तो अवश्य होनी चाहिये। इस हिसाब से अवन्तीसेन द्वारा कौशाम्बी पर आक्रमण किये
पावश्यक रिण, भाग २, पृ० १६१
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