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साध्वी-परम्परा] सामान्य पूर्वधर-काल : देवद्धि क्षमाश्रमण
७७५ ही अधिक श्रेयस्कर, प्रेरक और दिशावबोधक हो सकता है। निर्वाणोत्तर काल की साध्वी परम्परा का सर्वांगीण परिचय प्रस्तुत करने हेतु अनेक ग्रन्थों का अवलोकन किया गया, अनेक विद्वान् इतिहासविदों, सन्तों एवं साध्वियों से पावश्यक जानकारी प्राप्त करने का प्रयास किया गया पर इन सब प्रयत्नों का कोई उत्साहप्रद परिणाम नहीं निकला। श्वेताम्बर परम्परा के अनेक ग्रन्थों तथा दिगम्बर एवं श्वेताम्बर - दोनों परम्परामों के शिलालेखों के उल्लेखों से यह तो पूरी तरह सिद्ध होता है कि तीर्थस्थापन के काल से लेकर वर्तमान काल तक जैन. श्रमरणीवर्ग की पुनीत एवं पावन परम्परा अविच्छिन्न रूप से चली आ रही है। परन्तु समय-समय पर जो प्रमुख साध्वियां हुई, उनका जीवन-परिचय मिलना तो दूर अधिकांशतः नामोल्लेख तक दृष्टिगोचर नहीं होता। बड़े विस्तीर्ण काल के व्यवधान के पश्चात् दो चार प्रमुख साध्वियों के नाम अथवा नामोल्लेख के अभाव में उनका केवल साध्वियों के रूप में उल्लेख मात्र मिलता है।
निर्वाण काल से पूर्व की चन्दन बाला, मृगावती प्रादि कतिपय श्रमणी मुख्यानों का परिचय प्रस्तुत ग्रन्थमाला के प्रथम भाग में दिया जा चुका है । अव, निर्वाण पश्चात् १००० वर्ष की अवधि में हुई श्रमरणी-मुख्यानों में से जिन-जिन का जिस रूप में परिचय उपलब्ध होता है, उसे यहां संक्षेप में दिया जा रहा है :
१. प्रार्या चन्दनवाला - आर्या चन्दनबाला का नाम जैन जगत् में इन्द्रभूति गौतम और प्रार्य सुधर्मा के समान ही अमर रहेगा। प्राप श्रमण भगवान् महावीर की. प्रथम शिष्या और प्रभु के सुविशाल श्रमणी-समुदाय की प्रमुख एवं संचालिका थीं। आपके कुशल संचालकत्व काल में वीर प्रभु का श्रमणी समूह खूब फला-फूला और उत्तरोत्तर बढ़ता ही गया। चन्दनबाला चम्पानगरी के महाराजा दधिवाहन और महाराणी धारिणी की परम दुलारी पुत्री थीं। प्रभू महावीर ने छद्मस्थ काल में प्रति कठोर अभिग्रहपूर्ण बड़ी लम्बी तपस्या का पारणा चन्दनबाला के हाथों किया था, प्रतःप्रवर्तमान अवसर्पिणी काल की समस्त साध्वियों में प्रापको सर्वाधिक पुण्यशालिनी कहा जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। चम्पानगरी में हुए भयानक राज्य. विप्लव के परिणामस्वरूप बाल्यावस्था में आपको जिन घोर कष्टों को सहना पड़ा, उनको सुनने मात्र से अच्छे-अच्छे साहसी भी सिहर उठते हैं। उस संकट काल में बालिका चन्दनबाला ने जिस साहस और धैर्य से दुखों को सहन किया, उसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि प्रारम्भिक जीवन में भी उनका प्रात्मबल कितना प्रबल था।
आर्या चन्दनबाला के जीवन का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत ग्रन्थमाला के प्रथम खण्ड में दिया जा चुका है।' बाल ब्रह्मचारिणी महासती चन्दनबाला ने राजकुमारियों, श्रेष्ठिकन्याओं, राजरानियों, इभ्यपत्नियों एवं सभी वर्गों की भुमुक्षु . जैन धर्म का मौलिक इतिहास, भाग १, पृ० ४७६-४८४
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