Book Title: Jain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Author(s): Hastimal Maharaj
Publisher: Jain Itihas Samiti Jaipur

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Page 906
________________ ७७६ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [साध्वी-परम्परा - महिलामों को हजारों की संख्या में श्रमणी-धर्म में दीक्षित कर कल्याण-मार्ग में उनका नेतृत्व किया । मापने स्वयं प्रभु द्वारा प्रदत्त श्रमणीसंघ-मुख्या (प्रवर्तिनी) पद पर रहते हुए ३६,००० साध्वियों के प्रति विशाल साध्वी-संघ का बड़ी कुशलता के साथ संचालन किया। भापके तत्वावधान में प्रापका समस्त श्रमणी समूह सम्यक् रूपेण संयमप्रतिपालन, स्वाध्याय, ज्ञानार्जन, तपश्चरण 'मादि में निरत रह स्व-पर कल्याण में उत्तरोत्तर प्रग्रसर होता रहा। प्रवर्तिनी चन्दना बड़ी अनुशासनप्रिय थीं। मापके अनुशासन की यह विशेषता थी कि श्रमणी वर्ग की सभी साध्वियां सदा सजग रह कर स्वतः ही श्रमणी-प्राचार का समीचीन रूप से पालन करती रहती थीं। प्रवर्तिनी चन्दनबाला श्रमणाचार में साधारण से साधारण शैथिल्य एवं छोटी से छोटी भूल को भी भविष्य के लिय भयंकर अनर्थ का मूल मान कर अनुशासन और साध्वी समाज के हित की दृष्टि से किसी भी साध्वी को, चाहे वह कितनी ही बड़ी क्यों न हो, प्रेमपूर्वक सावधान करने में किंचित्मात्र भी संकोच नहीं करती थीं। आपने साध्वी मृगावती जैसी उच्चकोटि की साधिका को भी प्रभु के समवसरण में असमय तक बैठे रहने पर उपालम्भ देने में संकोच नहीं किया। अपनी गुरुणी द्वारा दिये गये उपालम्भ पर महासती मृगावती ने भी अपनी भूल के लिये निश्छल भाव एवं विशुद्ध अन्तःकरण से पश्चात्ताप किया और तत्क्षण क्षपकश्रेणी पर प्रारूढ़ हो केवलज्ञान की अनुत्तर, अक्षय एवं अनन्त परम ज्योति प्राप्त कर ली। एक लम्बे समय तक जिनशासन की सेवा एवं स्व-पर का कल्याण करते हुए प्रवर्तिनी चन्दनबाला ने ४ घातीकर्मों का क्षय कर केवलज्ञान और तदनन्तर अवशिष्ट चार अघाती-कर्मों का क्षय कर अन्त में प्रखण्ड-अव्याबाध-अनन्त प्रानन्दस्वरूप मोक्ष प्राप्त किया ।' महासती चन्दनबाला का परम श्लाघनीय एवं प्रेरणाप्रदायी संयमी-जीवन श्वेताम्बर .मौर दिगम्बर दोनों ही परम्परामों में बड़ा सम्मानास्पद माना गया है । मापकी आज्ञानुवर्तिनी प्रभु महावीर की ३६००० साध्वियों में से १४०० साध्वियों ने (चन्दनबाला सहित) समस्त कर्म समूह को ध्वस्त कर मोक्ष प्राप्त किया ।२. महासती चन्दनबाला के प्रवर्तिनीकाल में समस्त श्रमणी-संघ अविच्छिन्न और एकता के सूत्र में बन्धा रहा। इनके समय में साध्वी सुदर्शना के अतिरिक्त श्रमरिणयों का कोई अन्य संघाटक श्रमणी-संघ से पृथक् अथवा स्वेच्छाचारी हुमा हो, ऐसा कहीं कोई उल्लेख उपलब्ध नहीं होता। साध्वी सुदर्शना भी प्रभु महावीर के प्रथम निन्हव जमाली के प्रति स्नेहवश कुछ समय के लिए विपरीत श्रद्धानुगामिनी बन गई थी किन्तु अल्पकाल पश्चात् ही ढंक प्रजापति की प्रेरणा से प्रतिबद्ध हो एक हजार साध्वियों के साथ प्रायश्चित्तादि से प्रात्मशुद्धि कर पुनः आपके संघ में सम्मिलित हो गई। १-२ 'स्त्री तद्भव में मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकती' - इस मान्यतानुसार दिगम्बर परम्परा ____ में इन सबका मोक्ष जाना, नहीं माना गया है। -सम्पादक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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