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काल नि० ग० भ्रान्ति] सामान्य पूर्वधर-काल : देवद्धि क्षमाश्रमण
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सं० ५६५ अनुमानित करने की मान्यता का एक मात्र आधार नन्दि आम्नाय की प्राकृत पट्टावली है । इस पट्टावली के प्रारम्भ के श्लोंकों एवं पट्रावली की गाथानों पर भाषा, शब्द, भाव आदि की दृष्टि से विचार करने पर स्वतः ही यह प्रकट हो जाता है कि न तो यह कोई उच्च कोटि के विद्वान् को ही कृति है और न प्रति प्राचीन ही । इस पट्टावली के प्रथम श्लोक के तृतीय एवं चतुर्थ चरण तथा तृतीय श्लोक को पढते ही साधारण से साधारण भाषाविद् पर भी सहज ही प्रकट हो जाता है कि यह पट्टावली प्रति स्वल्प भाषाबोध वाले किसी साधारण रचनाकार की सामान्य कृति है। इतना सब कुछ होते हुए भी प्राचीन पुराणों एवं तिलोय पणत्ती जैसे माने हुए ग्रन्थ से भिन्न मान्यता की जननी होने के कारण इस पट्टावली का बहत ही बड़ा महत्व है । इतिहास में अभिरुचि रखने वाले विज्ञों के विचारार्थ इस पट्टावली को यहां दिया जा रहा है:
__नन्दि प्राम्नाय को पट्टावली श्री त्रैलोक्याधिपं नत्वा, स्मृत्वा सद्गुरुभारतीम् । वक्ष्ये पट्टावली रम्यां मूल संघ गणाधिपाम् ।।१।। श्री मुलसंघ प्रवरे, नन्द्याम्नाये मनोहरे।। बलात्कार गणोत्तंसे, गच्छे. सारस्वतीयके ।।२।। कुन्दकुन्दान्वये श्रेष्ठमुत्तमं श्रीगणाधिपं ।। तमेवात्र प्रवक्ष्यामि, श्रूयतां सज्जना जनाः ॥३॥
पट्टावली: अंतिम-जिण-णिव्वाणे, केवलणाणी य गोयम मुरिंणदो। वारहवासे य गये सुधम्मसामी य संजादो ॥१॥ तह बारह वासे पुरण संजादो जंबुसामि मुरिणरणाहो।। अठतीसवास रहियो, केवलणारणी य उक्किट्ठो ।।२।। वासट्ठी-केवलवासे तिहि मुणी गोयम सुधम्म जम्बू य ।। बारह वारह दो जण, तिय दुगहीणं च चालीसं ।।३।। सुयकेवलि पंच जणा बासट्रि वासे गये सुसंजादा।। पढम, चउदहवासं विण्हुकुमारं मुणेयव्वं ।।४।। नंदिमित्त वास सोलह तिय अपराजिय वास बावीसं । इगहीण वीसवासं, गोवद्धरण भद्दबाहु गुणतीसं ॥५ सदसुय केवलगाणी, पंच जरणा विण्ह नंदिमित्तो य। अपराजिय गोवद्धरण तह भद्दबाहु य संजादा ।।६॥ सद बासट्टि सुवासे गए सु- उप्पण्ण दह सुपुत्वहरा। सद-तिरासि । वासारिण य एमादह मुणिंवरा जादा ।।७।। - पायरिय विसाखपोटुल खत्तिय जयसेरण नागसेण मुणी। सिद्धत्थ धित्ति विजयं बुहिलिंग देव , धमसेणं ।।८।।
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