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जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [साध्वी-परम्परा भगवान् बोले-आनन्द ! यदि गौतमी पाठ गुरु धर्म स्वीकार करे तो उसकी उपसम्पदा (दोक्षा) हो सकती है।'
चुल्लवग्ग के अनुसार उनमें (पाठ गुरु धर्मो में) से मुख्य-मुख्य ये हैं - १. सौ वर्ष पूर्व भी दीक्षित भिक्षुणी उसी दिन दीक्षित भिक्षु का भी प्रभि
. वादन - प्रत्युत्थान व अंजलि-कर्म करे। २. जिस गांव में भिक्षु न हो, वहां भिक्षुणी न रहे। ३. हर पक्ष में उपोसत्य किस दिन है और धर्मोपदेश सुनने के लिये कब
माना है, ये दो बातें वह भिक्षु-संघ से पूछे । ४. चातुर्मास के पश्चात् भिक्षुणी को भिक्षु-संघ पोर भिक्षुणी संघ से प्रवा___ रणा-स्व-दोष-ज्ञापन की प्रार्थना करनी होगी। ५. किसी भी कारण से भिक्षुणी भिक्षु को डांटे-फटकारे नहीं और भिक्षु __ भिणियों को उपदेश दे।
तदनन्तर भगवान् बुद्ध ने महाप्रजापति गौतमी को उपसम्पदा दी पर अन्ततः वे इससे तुष्ट नहीं थे। उन्होंने मानन्द से कहा कि धर्म-संघ सहस्रों वर्ष चलता पर क्योंकि नारी को इसमें स्वीकार कर लिया गया है अतः यह चिरकाल तक नहीं टिकेगा । अब यह सैकड़ों वर्ष ही टिकने वाला है।"
___ महाप्रजापति गौतमी के प्रव्रज्या-प्रसंग को पढ़ने से ज्ञात होता है कि महात्मा बुद्ध नारी-प्रव्रज्या के लिए अन्ततः सहमत नहीं थे। महाप्रजापति गौतमी द्वारा तीन बार निवदेन किया जाना, बुद्ध द्वारा तीनों बार निषेध किया जाना, भगवान के अनन्य मन्तेवासी प्रामन्द द्वारा भी तीन बार अनुरोध किया जाना, उस पर भी बुद्ध की प्रस्वीकृति-ये घटनाक्रम यह सिद्ध करते हैं कि मानन्द द्वारा दूसरे प्रकार से पुनः प्रार्थना किये जाने पर बुद्ध ने महाप्रजापति गौतमी की प्रव्रज्या की जो स्वीकृति दी, वह केवल प्रानन्द का मन रखने के लिए थी। वे ऐसा कर प्रसन्न नहीं थे। संघ के उत्तरोत्तर उज्ज्वल भविष्य के सम्बन्ध में उनकी प्राशा धूमिल हो गई, जो उनके अन्तिम वाक्यों से प्रकट होता है। .. इस सन्दर्भ में हम यदि भगवान महावीर के विचारों पर गहराई से ऊहापोह करें तो उनके चिन्तन में ऐसा भेद ही प्रतीत नहीं होता कि अमुक मुमुक्ष · पुरुष है या नारी । उनकी दृष्टि में केवल, यह साधनोन्मुक्त व्यक्ति है, इतना सा रहता है। जिस प्रकार जाति, वर्ण, वर्ग का भेद उनके मन पर कोई असर नहीं करता, उसी प्रकार लिंग-भेद भी उनके समक्ष समस्या बन कर नहीं पाता। इतिहास इस बात का साक्षी है कि भगवान् महावीर ने बिना किसी संकोच के तीर्थस्थापना के अवसर पर गौतमादि पुरुषों को श्रमरण-धर्म में दीक्षित कर तत्काल चन्दनबाला प्रादि नारियों को भी श्रमणी-धर्म में दीक्षित किया। ' ल्म बन्न १०, १.१ २ पुल्ल बग्ग १०, २. २
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