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काल नि० ग० भ्रान्ति] सामान्य पूर्वधर-काल : देवद्धि समाश्रमण विरोधी और विखण्डित उल्लेखों को देख कर ही स्वर्गीय प्रेमीजी को दिगम्बर परम्परा की उपलब्ध पट्टावलियों के सम्बन्ध में कहना पड़ा कि वे अपूर्ण हैं तथा ऐसे समय में संग्रहीत की गई हैं, जब कि विच्छिन्न परम्परामों को जानने का कोई साधन न रह गया था।
प्रवचनसार की जयसेनाचार्यकृत टीका के प्रारम्भ में शिवकुमार और प्राध्यात्मी बालवन्द्रकृत कन्नड टीका में 'शिवकुमार महाराजम्' के उल्लेख को माधार बना कर कतिपय विद्वानों ने यह अनुमान लगाया कि प्राचार्य कुन्दकुन्द ने महाराजा शिवकुमार को बोष देने हेतु प्रवचनसार नामक ग्रन्थ की रचना की। कन्नड़ टीका में उल्लिखित शिवकुमार महाराज को शक सं० ४५० में हुए शिव मृगेश वर्म मान कर न्याय शास्त्री पं० श्री गजाधर लालजी जैन ने प्राचार्य कुन्दकुन्द का समय शक सं०.४५० लिखा है :
"श्री शिवकुमार-महाराज-प्रतिबोधनार्थ विलिलेख भगवान् कुन्दकुन्द : स्वीयं ग्रन्थमिति, समाविर्भावितं च पंचास्तिकायस्य क्रमशः कार्णाटिक-संस्कृतटीकाकारः श्री बालचन्द्र-जयसेनाचार्यः ततो युक्त यानयापि भगवत्कुन्दकुन्द समयः तस्य शिवमृगेशवर्मसमानकालीनत्वात् ४५० तम-शक-संवत्सर एवं सिद्धयति, स्वीकारे चास्मिन् क्षतिरपि नास्ति कापीति ।"
अर्थात्-श्री शिवकुमार महाराज को प्रतिबोध देने के उद्देश्य से प्राचार्य भगवान् कुन्दकुन्द ने इस ग्रन्थ की रचना की- यह कर्णाटिक टोकाकार बालचन्द्र और संस्कृत टीकाकार जयसेनाचार्य ने प्रकट किया है। इस युक्ति से भी प्राचार्य कुन्दकुन्द का समय शिवमृगेशवर्म (कदम्ब राजवंशी) के समकालीन होने से ४५० वां शक संवत्सर सिद्ध होता है और इसे स्वीकार करने में किसी प्रकार की बाधा भी उपस्थित नहीं होती।
प्रवचनसारादि की टीकामों में किये गये इस उल्लेख के माधार पर कि प्राचार्य कुन्दकुन्द ने शिवकुमार अथवा शिवकुमार महाराज नामक प्रासन्न भव्य के प्रतिबोधार्य प्रवचनसार का उपदेश दिया, डॉ. पाठक ने भी प्राचार्य कुन्दकुन्द को कदम्दवंशी महाराजा शिवमृगेशवर्म का समकालीन बताते हुए उनका समय शक सं० ४५० माना है। - इसी प्रकार प्रोफेसर चक्रवर्ती ने भी टीकाकारों द्वारा किये गये शिवकुमार के उल्लेख को प्राधार बना यह अनुमान लगाया है कि पल्लववंशी महाराजा शिवस्कन्द-युवा महाराजा के बोधार्थ प्राचार्य कुन्दकुन्द ने इस ग्रन्थ की रचना की।
___ सर्वप्रथम तो यह बात विचारणीय है कि माज जितने भी अन्य प्राचार्य कुन्दकुन्द की कृति माने जाते हैं उनमें से "बारस अणुवेक्खा" नामक ग्रन्थ को
समय प्राभूत (प्रथम संस्करण ई० १९१४ में प्रकाशित) की प्रस्तावना, पृ०८ समय प्राभूतम् भौर षट् प्रामृत संग्रह (मानिकचन्द दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला, बम्बई, पुष्प १७) की प्रस्तावना, पृ. १५
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