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काल नि० ग० प्रान्ति ] सामान्य पूर्वधर- काल : देवद्धि क्षमाश्रमण
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नाम नन्दी संघ की तथाकथित प्राकृत पट्टावली में भी दिये गये हैं । अहंदुबलि द्वारा किये गये संघ विभाजन का विवरण देने के पश्चात् इन्द्रनन्दि के श्रुतावतार में लिखा है :
तस्यानन्तरमनगारपुंगवो माघनन्दिनामाभूत् । सोऽप्यंगपूर्वदेशं प्राकाश्य समाधिना दिवं यातः । १०२
प्रर्थात् - प्रर्हदुबलि के पश्चात् मुनिश्रेष्ठ माघनन्दि नामक प्राचार्य हुए । वे भी अंग और पूर्वज्ञान के एक देश का उपदेश कर स्वर्गस्थ हुए ।
इन्द्रनन्दि के इस कथन से ऐसा प्रतीत होता है कि अर्हदबलि के पश्चात् माघनन्दि प्राचार्य पद पर श्रधिष्ठित हुए । संघ - विभाजन के विवरण को दृष्टिगत रखते हुए इस श्लोक का यह अर्थ भी लगाया जा सकता है कि महंदुबलि ने मूल संघ को १० अथवा ५ संघों में विभाजित किया, उन संघों में नन्दीसंघ का सर्वप्रथम स्थान था और उस नन्दिसंघ के प्राचार्य माघनन्दि हुए । इसी कारण इन्द्रनन्दि ने महंदुबलि के पश्चात् माघनन्दि का प्राचार्य पद पर अधिष्ठित होना बताया है । प्रर्हदुबलि के पश्चात् जो प्राचार्य - परम्परा इन्द्रनन्दि ने अपने श्रुताबतार में दी है, उसके साथ भानुमानित रूप में यदि नन्दी संघ की प्राकृत पट्टावली में उल्लिखित उन प्राचार्यो का काल जोड़ दिया जाय तो प्रर्हदुबलि के पश्चात् प्राचार्यों का क्रम और काल निम्नलिखित रूप में होगा :
गान
३४. माघनन्दि ३५. घरसेन
३६. पुष्पदन्त ३७. भूतबलि
प्राचार्यकाल
२१ वर्ष
१६,
३० 21
१०,
योग
पूर्ण योग
६० वर्ष
८७३ वर्ष
किन्तु प्राचार्य अर्हदुबलि के पश्चात् ऊपर बताये हुए चार प्राचार्यों के क्रम और काल को मानने में निम्नलिखित बाधाएँ उपस्थित होती हैं :
इन्द्रनन्दि ने स्पष्ट रूप से स्वीकार किया है कि धरसेन की गुरु शिष्यपरम्परा के सम्बन्ध में उन्हें कुछ भी ज्ञात नहीं है । इस दशा में धरसेन को माघनन्दि का उत्तराधिकारी प्राचार्य नहीं माना जा सकता। इसी प्रकार इन्द्रनन्दि को धरसेन के समय के सम्बन्ध में भी विदित नहीं है । अतः उनके उपरोक्त काल को भी प्रामाणिक नहीं माना जा सकता ।
धवला तथा श्रुतावतार के उल्लेखानुसार पुष्पदन्त और भूतबलि धरसेन की परम्परा से भिन्न किसी अन्य परम्परा के मुनि थे। ऐसी स्थिति में एक क्रमबद्ध
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