________________
७३२
जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [काल नि० ग• भ्रान्ति गंग और धर्म ये ११ मुनि दशपूर्वधर हुए। इन ग्यारहों दशपूर्वधरों के काल का योग १८३ वर्ष है।
अंतिम दशपूर्वधर धर्म मुनि के स्वर्गगमन के पश्चात् अनुक्रम से नक्षत्र, जयपाल, पाण्डु, द्रुमसेन और कंस नामक ५ मुनि एकादश अंगों के धारक हुए । इन पांच ११ अंगधरों के काल का योग २२० वर्षे होता है।
एकादशांगधारियों का २२० वर्ष का समय बीत जाने पर क्रमशः सुभद्र, अभयभद्र, जयबाहु मोर लोहार्य ये चार मुनि आचारांगधर (एक अंगधारी) कुल मिला कर ११८ वर्षों में हए।'
इस प्रकार भगवान् महावीर के . निर्वाण के पश्चात् केवलज्ञानी गौतम से लेकर अंतिम पाचारांगधर लोहार्य तक वीर निर्वाण सं० के ६८३ वर्ष व्यतीत हुए।
इसी प्रकार उत्तरपुराण तथा ब्रह्महेमचन्द्र कृत् श्रुत स्कन्ध में भी इन्द्रभूति गौतम से अंतिम प्राचारांगधर लोहार्य तक प्राचार्यों का उपरिचित.क्रम देने के पश्चात् लोहार्य के पश्चात् आचारांग का विच्छेद बताया गया है। ब्रह्म
' भगवत्परिनिर्वाणक्षणएवावाप केवलं गणभृत् ।
गौतमनामा सोऽपि, दादभिवत्सरमुक्तः ॥७२।। निर्वाणक्षण एवासावापत् केवलं सुधर्ममुनिः ।। बादशवर्षाणि विहृत्य सोऽपि मुक्ति परामाप ।।७३॥ जम्बूनामापि ततस्तनिर्वतिसमय एव कंवल्यम् । प्राप्याटत्रिशतमिह समा विहृत्याप निर्वाणम् ॥७४।। -जम्बूनामा मुक्ति प्राप यदासी तथैव विष्णुमुनिः । पूर्वांगभेदभिन्नाशेषश्रुतपारगो जातः ॥७६॥ एवमनुबद्धसकलश्रुतसागरपारगामिनोऽत्रासन् । नन्द्यपराजितगोवर्द्धनाह्वया
भद्रबाहुश्च ॥७॥ एषां पंचानामपि काले वर्षशतसम्मितेऽतीते । दशपूर्वविदोऽभूवंस्तत एकादश महात्मानः ।।७।। तेषामाद्यो नाम्ना विशाखदत्तस्ततः क्रमेणासन् । प्रोष्ठिलनामा क्षत्रियसंज्ञो जयनागसेनसिदार्थाः ।।७।। धतिषेण विजयसेनी च बुद्धिमान् गंग धर्मनामानी। एतेषां वर्षसतं अशीतियुतमजनि युगसंख्या ||८०॥ . नक्षत्रो जयपालः पाण्डुदुमसेनकंसनामानी। एते पंचापि ततो बभूवुरेकादशांगपराः ।।१।। विशत्यधिकं वर्षशतद्वयमेषां बभूव युगसंख्या। भाचारांगधराश्चत्वारस्तत उदभवन् क्रमशः ॥२॥ प्रथमस्तेषु सुभद्रोऽभयभद्रोऽन्यापरोऽपि जयबाहुः । लोहार्योऽन्त्यश्चतेऽष्टादशवर्षयुगसंख्या ॥३॥
[श्रुतावतार - इन्द्रनन्दी] २ उत्तर पुराण, पर्व ७६, श्लो० ११८ से १२० तथा श्लो. ५१५ से ५२७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org