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काल नि० ब्रान्ति] सामान्य पूर्वघर-काल : देवद्धि क्षमाश्रमण - दिगम्वर परम्परा के प्रामाणिक माने जाने वाले ग्रन्थ तिलोय पण्णत्ती में भी वीर नि० सं० १ से ६८३ तक हुए प्राचार्यों के तथा थुतपरम्परा के काल का जो विवरण दिया गया है वह उपरिलिखित धवला के विवरण से पर्याप्त रूपेण मिलता है । तिलोय पण्णत्तों में भी लोहार्य को अंतिम याचारांगधर बताते हुए वीर नि० सं०६८३ में उनका स्वर्गस्थ होना बताया गया है और यहां स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि लोहार्य के पश्चात् भरत क्षेत्र में कोई प्राचारांगधर नहीं होगा।'
इन्द्रनन्दी ने भी अपने ग्रन्थ श्रुतावतार में वीर नि० सं० ६८३ में स्वर्गस्थ हुए अंतिम याचारांगधर लोहार्य सौर उनके पश्चाद्वर्ती कतिपय प्राचार्यों का नामोल्लेख करते हुए कुछ ऐतिहासिक घटनाग्रों पर निम्नलिखित रूप में प्रकाश डाला है :
भगवान महावीर का निर्वागा होते ही तत्क्षण गौतम गणधर को केवल ज्ञान हुमा और वे १२ वर्ष केवली रह कर मुक्त हुए । गौतम का निर्वाण होते ही मुधर्म मुनि ने केवलज्ञान प्राप्त किया। सूधर्म भी १२ वर्ष केवली के रूप में विचरण कर सिद्ध हुए। सुधर्म के निर्वाण के समय ही जम्बू को केवल ज्ञान की प्राप्ति हई और वे ३८ वर्ष तक केवली रूप से विचरण कर मुक्त हुए। ये तीनों ही अनुबद्ध केवली थे । जम्बू के मुक्त होते ही केवल्य सूर्य भरत क्षेत्र से प्रस्त हो गया। (तीनों केवलियों के काल का योग १२+१२+३८६२) । - जंबू के पश्चात् विष्णु, नन्दि, अपराजित गोवर्द्धन और भद्रबाहु ये ५ श्रुतकेवली हुए इन पांचों श्रुतकेवलियों का सम्मिलित काल १०० वर्ष रहा ।
श्रुतकेवलियों का १०० वर्ष का काल व्यतीत हो जाने पर क्रमशः विशाखदत्त, प्रोप्ठिल, क्षत्रिय, जय, नागसेन, सिद्धार्थ, धृतिपेण, विजयसेन, बुद्धिमान्, १ बासट्ठी वासारिण गोदमपहुदीरण गाणवंताणं । धम्मपयट्टणकाले, परिमारणं पिंडरूवेणं ।।१४७८।। णंदी य दिमित्तो विदियो अवराजिदो तइज्जो य । गोवद्धणो चउत्थो, पंचमग्रो भद्दवाहुत्ति ॥१४८२।। पंच इमे पुरिसवरा, च उदस पुन्वी जगम्मि विक्खादा ।......।।१४८३।। पंचाण मेलिदाणं कालपमारणं हवेदि वाससदं ।...... ।।१४८४।।
..........दसपुवघरा इमे सुविक्खादा । पारंपरिप्रोवगदो, तेसीदिसदं च ताण वासाणि ।।१४८६।। -एक्कारसंगधारी, पंच इमे वीर तित्थम्मि ॥१४८८।। दोणि सया वीसजुदा, वासाणं ताण पिण्ड परिमारणं ।......||१४८६।। पढमो सुभद्दणामो, जसभद्दो तह य होदि जसबाहू । तुरिमो य लोहणामो, एते पायार अंगधरा ।।१४६०।। सेसेक्करसंगाणं चोद्दसपुव्वाणमेक्कदेसधरा । एक्कसयं अट्ठारसवासजुदं ताण परिमाणं ।।१४६१।। तेसु प्रदीदेसु तदा, प्राचारधरा ण होंति भरहम्मि गोदममुणिपहुदीणं, वासाणं (६८३) छस्सदाणि तेसीदी ।।१४९२।।
. [तिलोयपण्णत्ती, ४ महाधिकार]
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