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देवद्ध का० रा० स्थिति ] सामान्य पूर्वघर-काल : देवद्धि क्षमाश्रमण
४. समुद्रगुप्त
वी० नि० सं०
५. चन्द्रगुप्त (द्वितीय) विक्रमादित्य
६. कुमारगुप्त ( प्रथम ) महेन्द्रादित्य
७. स्कन्दगुप्त विक्रमादित्य
८. पुरुगुप्त
६. नरसिंह गुप्त
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(७) पुत्रं - महाराजाधिराज श्री पुरुगुप्त महादेवी - चन्द्रदेवी
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( १ ) महाराजा श्रीगुप्त
(२) पुत्र - महाराजा श्री घटोत्कच
(३) पुत्र - महाराजाधिराज श्री चन्द्रगुप्त पथम महादेवी - कुमारदेवी
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गुप्त वंश के वें राजा बुधगुप्त के नालन्दा से प्राप्त हुए लेख में श्रीगुप्त से बुधगुप्त तक गुप्तराजानों की नामावली दी प्रकार है :
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(६) पुत्र - महाराजाधिराज श्री कुमारगुप्त प्रथम महादेवी - अनन्तदेवी
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(४) पुत्र - लिच्छविदोहित्र महाराजाधिराज समुद्रगुप्त महादेवी - दत्तदेवी
६६६
८६२ से ६०२
९०२ से ६४१
४१ से ८२
६८२ से ६६४
६६४ से ६६६
६६६ से १०००
(५) अप्रतिरथ - परमभागवत महाराजाधिराज श्री चन्द्रगुप्त द्वितीय
महादेवी - ध्रुवदेवी
एक मुद्रा अभिहुई है, जो इस
( ८ ) पुत्र - परमभागवत महाराजाधिराज श्री बुधगुप्त
इस अभिलेख में कुमारगुप्त के पश्चात् स्कन्दगुप्त का और पुरुगुप्त के पश्चात् कुमारगुप्त द्वितीय का नाम छोड़ दिया गया है।
सामान्य पूर्वधर - काल सम्बन्धी दिगम्बर परम्परा की मान्यता
निर्वाणानन्तर दश पूर्वधर - काल तक की श्रुतपरम्परा तथा प्राचार्य परम्परा के सम्बन्ध में श्वेताम्बर एवं दिगम्बर - दोनों ही परम्पराम्रों की मान्यताओं का इस ग्रन्थ में यथाप्रसंग जो विवरण दिया गया है, उससे यह स्पष्टतः प्रकट होता है कि एक ही मूंग की दो फाड़ के समान प्रभु वीर की उपासक इन दोनों परम्पराओं की मान्यताओं में परस्पर पर्याप्त अन्तर है । पूर्वधरों के नाम, उनकी संख्या तथा पूर्व - ज्ञान के अस्तित्वकाल विषयक भेद के अनन्तर इन दोनों परम्पराओं का मान्यता-भेद उत्तरोत्तर बढ़ता ही गया है ।
जहां श्वेताम्बर परम्परा चतुर्दश पूर्वधरों की विद्यमानता वीर नि० सं० ६४ से १७०, तदनुसार १०६ वर्ष मानती है, वहां दिगम्बर परम्परा में चौदह पूर्व
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