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'प्रज्ञा० और पटवण्डागम] सामान्य पूर्वधर-काल : देवद्धि क्षमाश्रमण
७१६ नि० सं० ६२६ में हुई पागम वाचनायों के जिन पाठों के सम्बन्ध में दोनों वाचनामों के प्रतिनिधि एक मत न हो सके, उन दोनों पाठों को यथावत् पुस्तकारुढ करते हुए नागार्जुनीया वाचना के पाठों के सम्बन्ध में "नागज्जुरणीया पुरण एवं भरणन्ति" अथवा "अण्णे पुगण एवं भान्ति" - इस प्रकार का निर्देश कर दिया गया । नंदीसूत्र के मूल पाठ में पन्नवणा सूत्र का उल्लेख निम्न लिखित रूप में विद्यमान है:
"८१ से कि तं उक्कालियं ? उक्कालियं प्रणेगविहं पण्णत्तं, त जहा :दसवेयालियं १, कप्पियाकप्पियं २, चूल्लकप्पसुत्तं ३, महाकप्पसुत्त ४, प्रोवाइयं ५, रायपसेरिणयं ६, जीवाभिगमो ७, पण्णवरणा ८,"......."महापच्चक्खाणं २६ से तं उक्कालियं ।
यह एक निविवाद तथ्य है कि वीर नि० सं० १८० में हुई आगमवाचना में प्रार्य स्कंदिल और गार्य नागार्जुन इन दोनों के तत्वावधान में वीर नि० सं० ६२३ में हुई पागमवाचनामों में जिन आगमों का पाठ सुस्थित एवं सुस्थिर किया गया था, उन्हीं प्रागमों के दोनों पाठों का एकीकरण करते हुए उसे पुस्तकास्ट किया गया था । ऐसी स्थिति में यह तो सुनिश्चित रूप से सिद्ध हो जाता है कि वीर निर्वाण ६२३ के बहुत पहले से ही पन्नवणा सत्र श्रमण-श्रमणी-समूह के स्मृतिपटल पर अंकित हो उनका कण्ठाभरण बना हुआ था।
पनवणासत्र वस्तुतः वीर नि० सं० ३३५ से ३७६ तक युगप्रधानपद पर विराजमान २३ वें वाचकवर आर्य श्यामाचार्य की ही कृति है - इस तथ्य के परस्पर एक दूसरे द्वारा परिपुष्ट जितने अधिक प्रबल और प्राचीन प्रमाण उपलब्ध हैं, उतने अधिक संभवतः द्वादशांगी को छोड़कर शेष प्रागमों में से बहुत कम के ही उपलब्ध हो सकेंगे।
उपरोक्त सभी प्रबल प्रमाणों के परिप्रेक्ष्य में निष्पक्ष दृष्टि से विचार करने पर यह पूर्णतः सिद्ध हो जाता है कि पनवणा सत्र आर्यश्याम द्वारा वीर नि० सं० ३३५ से ३७६ के बीच के किसी समय में दृष्टिवाद से उद्धृत उनकी कृति है।
यद्यपि नन्दी सूत्रान्तर्गत वाचकवंश की पट्टावली और मेरुतुंगीया विचार श्रेणी के उपर्युक्त उल्लेखों से भली-भांति यह सिद्ध हो चुका है कि प्राचार्य श्याम वाचकवंश के एक दृष्टि से १३ वें और दूसरी दृष्टि से २३ वें पुरुष हैं तथापि हम शोधार्थियों के समक्ष शोध हेतु एक जटिल प्रश्न उपस्थित करना चाहते हैं। याकिनी महत्तरासन आचार्य हरिभद्र ने पन्नवणा सत्र की टीका में उपर्युक्त दो अन्यकतक गाथाओं की टीका करते हुए प्रार्य श्याम को वाचकवंश का २३ वां पुरुष तो बताया है, पर उन्होंने उन्हें गौतम गणधर से २३ वां पुरुष न बता कर
आर्य सुधर्मा से ही २३ वा पुरुष बताते हुए लिखा है :' नंदी सूत्र सणि (मुनि पुण्य वियजी द्वारा संपादित), पृ० ५७
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