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देवदि का. रा. स्थिति सामान्य पूर्वधर-काल : देवटि क्षमाश्रमण
६६७. यस, मेनेण्डर प्रादि विदेशी प्राक्रान्ताओं ने सौराष्ट्र को ही भारत का प्रवेश-द्वार बनाया था। शकों ने तो कुछ व्यवधानों को छोड़ कर शताब्दियों तक सौराष्ट्र को अपनी सत्ता का गढ़ बनाये रखा था। स्कन्दगुप्त ने इस महत्त्वपूर्ण प्रदेश की सुरक्षा के लिये किसी सुयोग्य शासक का चयन करने के सम्बन्ध में बहुत दिनों तक सोच-विचार किया और अन्त में पर्णदत्त को ही सर्वाधिक सुयोग्य समझ कर उसे सौराष्ट्र का शासक नियुक्त कर परम संतोष का अनुभव किया।
___ स्कन्दगुप्त ने जनकल्याण के अनेक कार्य किये । मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त के शासनकाल में वीर नि० सं० २२७ के आस पास बनी सुदर्शन झील का स्कन्दगुप्त ने विपुल धनराशि व्यय कर जीर्णोद्धार करवाया।
स्कन्दगुप्त स्वयं विष्णुभक्त था पर अन्य सभी धर्मों के प्रति वह सद्भाव रखता था। उसके शासनकाल में शवों, जैनों एवं बौद्धों को अपने धर्म का प्रचारप्रसार करने की पूर्ण स्वतन्त्रता थी।
उत्तर प्रदेश में गोरखपुर जिले के कहोम नामक स्थान से प्राप्त शिलालेख में किसी मद्र नामक व्यक्ति द्वारा प्रादिकर्ता प्रहंतों (श्री भगवानलाल इन्द्रजी के अभिमतानुसार एक ही स्तम्भ में आदिनाथ, शान्तिनाथ, अरिष्टनेमि, पार्श्वनाथ तथा महावीर) की मूर्तियाँ बनवाई गईं।
जूनागढ़ के शिलालेख तथा भितरी के स्तम्भलेख में स्कन्दगुप्त के शौर्य, प्रौदार्य, सच्चरित्रता, प्रजावत्सलता आदि सम्राटोचित गुणों का जो चित्रण किया गया है, उसके.कतिपय अंश पहले उद्धत किये जा चुके हैं। स्कन्दगुप्त के शासनकाल में भारतीय जनसाधारण भी भौतिक एवं आध्यात्मिक समृद्धि से बड़ा समृद्ध था। यथा राजा तथा प्रजा की कहावत को चरितार्थ करने वाले कुछ अंश यहां प्रस्तुत किये जा रहे हैं।
स्कन्दगुप्त के विमल चरित्र का भितरी के स्तम्भलेख में निम्नलिखित रूप से उल्लेख किया गया है :चरितममलकीतः गीयते यस्य शुभ्रम,
दिशि दिशि परितुष्टैराकुमारं मनुष्यैः ।।५।। ' सर्वेषु देशेषु विधाय गोप्तृन्, संचिन्तयामास बहुप्रकारम् । सर्वेषु मृत्येष्वपि संहतेषु, यो मे प्रशिष्यन्निखिलान्सुराष्ट्रान् । माम् ज्ञातमकः खलु पर्णदत्तो, भारस्य तस्योढहने समर्थः ।।
[स्कन्दगुप्त का, जूनागढ़ का शिलालेख] 'जूनागढ़ का शिलालेख ३ पुण्यस्कंघ स चक्रे जगदिदमखिलं संसरतीक्ष्य भोतो,
बेवोऽयं भूतभूत्यं पथि नियमवतामहंतामादिकर्तन् । मस्तस्यात्मजोऽभूत् द्विजगुरुयतिषु प्रायशः प्रीतिमान्यः । [कहोम का स्तम्भलेख]
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