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देवद्धि का० रा०स्थिति] सामान्य पूर्वधर-काल : देवद्धि क्षमाश्रमण
६६५ कतिपय इतिहासज्ञों का अभिमत है कि गुप्त सम्राट् कुमार गुप्त के निधनानन्तर पुरुगुप्त राज्य सिंहासन पर बैठा । पुरुगुप्त को अपदस्थ करने एवं गुप्त साम्राज्य के सिंहासन पर अपना अधिकार करने के लिये स्कन्दगुप्त को गृहयुद्ध में उलझना पड़ा। उस गृह-कलह में स्कन्दगुप्त अन्ततोगत्वा विजयी हुप्रा और पुरुगुप्त को राज्यच्युत कर उसने गुप्त साम्राज्य के राजसिंहासन पर अधिकार कर लिया। अपने इस अभिमत की पुष्टि में उन विद्वानों द्वारा स्कन्दगुप्त के भितरी (उत्तरप्रदेश) स्तम्भलेख का निम्नलिखित श्लोक प्रस्तुत. किया जाता है :
पितरि दिवमुपेते विप्लूतां वंशलक्ष्मीम.
भुजबलविजितारिर्यः प्रतिष्ठाप्य भूयः । जितमिव परितोषान्मातरं साश्रुनेत्राम,
___ हतरिपुरिव कृष्णो देवकीमभ्युपेतः ।।६।। इस श्लोक का भावार्थ यह है कि पिता के दिवंगत होने के पश्चात् अपने बाहुबल से शत्रुनों पर विजय प्राप्त कर स्कन्दगुप्त ने संकटों से घिरे गप्त साम्राज्य की पुनः पूर्ववत् प्रतिष्ठा स्थापित की। जिस प्रकार कंस आदि शत्रुनों का संहार करने के पश्चात् श्री कृष्ण (अपनी विजय का संदेश सुनाने) मां देवकी की सेवा में उपस्थित हुए, उसी प्रकार स्कन्दगुप्त ने भी शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर अपनी माता को अपनी विजय का संदेश सुनाया। उसकी माता के नेत्रों में हर्ष के मांसू भर पाये।
__कुमारगुप्त के पश्चात् पुरुगुप्त को गुप्तसम्राट मानने वाले विद्वान् “विप्लुतां वंशलक्ष्मीम्" इस पद से यह अनुमान लगाते हैं कि दायादाधिकार के प्रश्न को लेकर स्कन्दगुप्त का अपने पुरुगुप्त प्रादि अन्य भाइयों से झगड़ा हुआ। उस गृहकलह के फल स्वरूप वंशलक्ष्मी विप्लत अर्थात संकटाच्छन्न हो गई। स्कन्दगप्त ने अपने भुजबल से उन शत्रुओं (न कि भाइयों) को जीत कर उस विप्लुत (पलायनोबत) वंशलक्ष्मी को पुनः स्थिर किया।
_ वस्तुतः इस प्रकार के प्रबल प्रमाण विद्यमान हैं, जिनसे यह स्पष्टतः सिद्ध होता है कि कुमार गुप्त की मृत्यु के पश्चात गप्तसाम्राज्य पर जो संकट के काले बादल छाये, वे हूणों के प्रबल आक्रमण के फलस्वरूप थे, न कि तथाकथित दायादाधिकार के प्रश्न को लेकर परस्पर भाइयों में हुए किसी गृहकलह के कारण। इस तथ्य की पुष्टि में निम्नलिखित प्रमाण प्रस्तुत किये जा सकते हैं :
. १. कुमारगुप्त के समय का गुप्त सं० १३५ का मथुरा से प्राप्त जैन शिलालेख।
२. कुमारगुप्त के चांदी के वे सिक्के, जिन पर गुप्त सं० १३६ अंकित है। ३. स्कन्दगुप्त का गुप्त संवत् १३६ का जूनागढ़ स्थित चट्टान अभिलेख । उपरि लिखित तीन प्रमारणों में से पहले दो प्रमाण इस बात की साक्षी
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