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मैन वर्ग का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [देवदि कालीन रा० स्थिति जाता है कि स्कन्दगुप्त का शासनकाल वीर नि० सं० ९८२. से ९६४ (ई० सन् ४५५-४६७) तक रहा। स्कन्दगुप्त बड़ा ही शूरवीर और प्रतापी सम्राट् था: उसे जीवन भर संघर्षरत रहना पड़ा। यह पहले बताया जा चुका है कि स्कन्दन ने अपने पिता के शासनकाल में पुष्यमित्रों की बड़ी शाकशाली विशाल सेना को परास्त कर गुप्त-साम्राज्य की रक्षा की थी। गुप्त-साम्राज्य की बागडोर सम्हालते ही स्कन्दगुप्त ने मध्य एशिया से पाये हुए बर्बर हूण आक्रान्तामों से अपनी मातृभूमि भारत की रक्षार्थ बड़ी वीरता के साथ युद्ध किया। यूरोप और एशिया के अनेक भू-भागों को अपने घोड़ों की टापों से पददलित करते हुए हरणों ने टिवी दल की तरह भारत पर आक्रमण किया। एशिया की बड़ी-बड़ी राजसनारों को भू-लुण्ठित करने के पश्चात हरण जाति का सरदार प्रांटीला बड़े गर्व के साथ कहा करता था- "जिस भूमि पर मेरे घोड़े की टाप एक बार गिर जायगो, उस भूमि पर बारह वर्ष पर्यन्त घास तक नहीं उग सकेगी।"
_हूण सैनिक, संख्या में अत्यधिक होने के साथ-साथ निपुण अश्वारोहा थे। उन्होंने प्रलयकालीन प्रांधी की तरह भारत पर मायाम किया। स्कन्दगुप्त अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिये एक सशक्त सेना ना रणांगण में हूणों की सेना से जा भिड़ा। बड़ा भीषण युद्ध हमा: हरण सनि: भारतीयों के भीषण प्रतिरोध से तिलमिला उठे क्योंकि अब तक प्रत्येक देश में वण्डर की तरह बढती हुई उनकी दुर्दान्त अश्वारोही सेना को इस प्रकार अन्यत्र कहीं नहीं रोका गया था। हरणों ने अपने प्रारणों.की बाजी लगा कर पूरी शक्ति के साथ आगे बढ़ने का प्रयास किया । षण्मुख कार्तिकेय के समान स्कन्दगुप्त ने भारतीय सेना का संचालन करते हुए आततायी हूण पाक्रान्ताओं का संहार किया और उन्हें मागे नहीं बढ़ने दिया। लोमहर्षक तुमुलयुद्ध में जनधन की अपार क्षति उठाने के अनन्तर बुरी तरह हारा हुमा हप सरदार अपनी बची खुची सेना के साथ रणांगण से भाग खड़ा हुमा। ऐसा अनुमान किया जाता है कि भारत पर हुए विदेशी भाक्रमरणों में हगों द्वारा किया गया प्राकमण सबसे अधिक भीषण था।' स्कन्दगुप्त ने अद्भुत शौर्य पोर साहस के साथ दुर्दान्त हूणों को परास्त कर भारत की एक महान संकट से रक्षा की। - यद्यपि इस युद्ध में एणों की शक्ति नष्टप्रायः हो चुकी.पी तथापि अपनी पराजय का प्रतिषोष लेने के लिये हरणों ने अनेक बार भारत पर पाक्रमण किये। · हठी हूण सरदार ने पन्द्रह-पन्द्रह, सलह-सोलह वर्ष की आयु के हूण किशोरों
को युद्ध में झौंक या घर हर बार स्कन्दगुप्त ने रणक्षेत्र में हूमों को बुरी तरह पराजित किया।
• अपने १२ वर्ष के शासनकाल में निरन्तर युद्धों में उलझे रहने के कारण स्कन्दगुप्त का कोषबल प्रत्यधिक क्षीण हो चुका था तथापि उसने अपने जीवनकाल में बर्बर हूण प्रातताइयों को भारत की धरती पर मागे नहीं बढ़ने दिया। 'हवंयस्य समागतस्य समरे बोम्या घरा कम्पिता।
- [स्कन्दगुप्त का भितरी (जिला गाजीपुर, उत्तरप्रदेश) स्तम्भलेख]
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