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जैन धर्म का मौलिक इतिहास - द्वितीय भाग [ श्रागमवाचना प्र० लेखन नागार्जुनीया वाचना के जो महत्वपूर्ण पाठ थे, उन्हें भी यथावत् वाचनान्तर के रूप से सुरक्षित कर सब को पुस्तकारुढ करवाया ।
यहां यह विचार हो सकता है कि क्या देवद्धि क्षमाश्रमण से पूर्व शास्त्र लिपिबद्ध नहीं हुए थे । यद्यपि पुष्ट प्रमारण के अभाव में स्पष्ट रूप से इस विषय में निर्णय करना संभव नहीं है फिर भी जैन साहित्य में यत्र-तत्र कतिपय पूर्ववर्ती विद्वानों द्वारा किये गये उल्लेखों को देखते हुए यह संभव लगता है। कि प्रार्य रक्षित के समय में शास्त्रीय भागों का कुछ अभिलेखन प्रारम्भ हो गया हो। क्योंकि अनुयोगद्वार सूत्र में द्रव्यश्रुत का नामोल्लेख करते हुए पुस्तक पर लिखित सूत्र का उल्लेख किया गया है। जैसा कि कहा है -
"पत्तयपुत्थय लिहियं""
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निशीथ चूरिंग में शिष्य के उपकारार्थ पुस्तक -पंचक के ग्रहण का भी उल्लेख किया गया है । यथा :- 'सेहउग्गहधारणादि परिहारिंग जाणिऊरण कालियसुयट्ठा, कालियसुयनिज्जुत्तिनिमित्तं वा पुत्थगपरणगं धिप्पति ।
. इतिहासज्ञ मुनि कल्याण विजयजी देवद्धिगणी के पहले आगम-लेखन के पक्ष में निम्न विचार प्रस्तुत करते हैं :
"देवद्धिगरणी के पहले यदि श्रागम लिखे हुए नहीं होते तो श्रनुयोगद्वार सूत्र में द्रव्यश्रुत के वर्णन में 'पुस्तक लिखितश्रुत' का उल्लेख नहीं होता । इससे यह बात तो निश्चित है कि देवद्धिगणी के समय से बहुत पहले जैन शास्त्र लिखने की प्रवृत्ति हो चली थी । छेद सूत्रों में साधुयों को कालिक श्रुत और कालिक श्रुत-निर्युक्ति के लिये ५ प्रकार की पुस्तकें रखने का अधिकार दिया गया है ।" 3
फिर मथुरा और वल्लभी की वाचनात्रों में भी आगमों का संकलन कर उन्हें लेखबद्ध किया गया इस प्रकार का उल्लेख मिलता है। जैसा कि हेमचन्द्राचार्य ने अपने योगशास्त्र में कहा है :
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“जिनवचनं च दुष्षमाकालवशादुच्छिन्नप्रायमिति मत्वा भगवद्भि नागार्जुनस्कन्दिलाचार्य प्रभृतिभिः पुस्तकेषु न्यस्तम् ।' ।"४ इसके समर्थन में हिमवन्त स्थवि - रावली में उल्लेख मिलता है कि मथुरा निवासी श्रोसवंशीय श्रमणोपासक पोलाक ने गन्धहस्तिकृत विवरण के साथ सब शास्त्रों को तालपत्र आदि पर लिखा कर साधु को अर्पित किया ।
१
अनुयोगद्वार, द्रव्यश्रुताधिकार सूत्र, ३४
२ निशीय चूरिण, उ. १२
3 वीर निर्वाण और जैन काल गणना, पृ. १०६
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योगशास्त्र, प्रकाश ३ पत्र २०७
मयुरानिवासिना श्रमणो रास कवरे गौशव शविभूषणेन पोलाकाभिधेन तत्सकलमपि प्रवचनं गंधहस्तिकृत विवरणोपेतं तालपत्रादिषु लेग्वयित्वा भिक्षुभ्यः स्वाध्यायार्थं समर्पितम् ।
[ हिमवन्त स्थविरावली, अप्रकाशित ]
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