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जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [देवद्धि को गुरु-परम्परा आर्य षांडिल्य के शिष्य बता रहे हैं और दूसरे नन्दीसूत्र की स्थविरावली, जिनदास रचित चूणि, हारिभद्रीया वृत्ति, मलय गिरीया टीका और मेरूतुंगीया विचारश्रेणी के आधार पर देवद्धि को दृष्यगरणी का शिष्य बताते हैं। तीसरा पक्ष देवदि को आर्य लौहित्य के शिष्य होने का भी उल्लेख करता है।
इन विभिन्न विचारों में से यह निर्णय करना है कि वास्तव में देवद्धि किस परम्परा के और किनके शिष्य थे। इतिहास के विशेषज्ञ मुनि श्री कल्याणविजयजी प्रादि लेखकों ने इनको सुहस्ती-परम्परा के आर्य षांडिल्य का शिष्य मान्य किया है। उनका कहना है कि नन्दीसूत्र की स्थविरावली देवद्धि की गर्वावली नहीं अपितु युग प्रधानावली है, देवद्धि की गर्वावली तो कल्पसूत्रीया स्थविरावली है। अपने इस मन्तव्य की पुष्टि में उन्होंने कहा है कि कल्पसूत्रस्थ स्थविरावली में पांडिल्य के पश्चात् कुछ गाथाएं देकर देवद्धि को वंदन किया गया है।
___ कल्प स्थविरावली के गद्य पाठ के अन्तिम सूत्र में आर्य धर्म के अन्तेवासी काश्यपगोत्रीय आर्य षांडिल्य बताये गये हैं। इसके पश्चात् १४ गाथामों से कतिपय प्राचार्यों को वंदन किया गया है। उनमें फल्गुमित्र से काश्यपगोत्रीय धर्म तक तो पाठगत स्थविरों की ही वन्दना की गई है। तदनन्तर (१) स्थविर आर्य जम्बू, (२) प्रार्य नन्दियमपिय, (३) माढरगोत्रीय आर्य देसिगणी, (४) स्थिरगुप्त क्षमाश्रमण, (५) स्थविर कुमार धर्म, और (६) देवद्धिक्षमाश्रमण काश्यपगोत्रीय को प्रणाम किया गया है। बस यही कल्पम्त्रीय स्थविरावली को देवद्धि को गुवविली मानने का प्राधार माना है। स्थविरावली के अन्य प्राचार्यों की तरह जम्बू आदि स्थविरों के लिये यह नहीं बताया गया है कि ये किनके अन्तेवासी थे । गाथाओं की शैली और उनमें फल्गुमित्र प्रादि कुछ प्राचार्यों के नामों का पुनरावर्तन कर वन्दन करने से प्रतीत होता है कि पीछे के किसी लेखक ने भक्तिवश जम्व आदि पाठ प्राचार्यों को वन्दन कर अन्तिम गाथा में देवद्धि क्षमाश्रमरण का नाम भी जोड़ दिया है। स्थविरावली के मूलपाठ में तो इनका कहीं उल्लेख तक नहीं है। ऐसी स्थिति में केवल देवद्धि क्षमाश्रमण ने कल्पसूत्र का संकलन किया और उसकी स्थविरावली में प्रार्य धर्म के अन्तेवासी पार्य पांडिल्य का अन्तिम नाम है, यही एक पांडिल्य को देवद्धि के गुरु मानने का आधार हो सकता है। अन्यथा कल्पसूत्रीया स्थविरावली में ऐसा कोई उल्लेख दृष्टिगोचर नहीं होता, जिन पर से कि देवद्धि के गुरु का स्पष्टल: निर्णय किया जा सके ।
___ गाथाओं में निर्दिष्ट प्राचार्यक्रम के आधार से यदि देवद्धि की गुरु परम्परा मान्य की जाय तो स्थविर कुमार धर्म को देवदि का गुरू मानना होगा। क्योंकि कुमार धर्म की वन्दना के पश्चात् देवद्धि क्षमाश्रमण को प्रणिपात किया गया है । वस्तुतः कल्प स्थविरावली की अन्त की गाथानों में देवद्धि क्षमाश्रमण के आसपास कहीं पांडिल्य का नामोल्लेख भी नहीं है। हम नहीं समझ पाते कि ऐसी स्थिति में देवद्धि को प्रार्य पाण्डिल्य का शिष्य किस प्राधार पर बताया जाता है । थवि रावली को गहराई से देखने पर भी प्रार्य पाण्डिल्य को देवद्धि का गुरु मानने
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