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सामान्य पूर्वघर - काल: देवद्धि क्षमाश्रमरण
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देवद्धि श्रौर देववाचक ] कारण उनका दूसरा नाम देवद्विगरणी क्षमाश्रमरण अथवा देवद्धि क्षमाश्रमरण ही व्यवहार में बोला जाता रहा हो तो कोई श्राश्चर्य नहीं ।
वाचकवंश की परम्परा में प्राचार्य दृष्यगणी के पश्चात् जो २५वें प्राचार्य देववाचक माने गये हैं, वे कोई अन्य नहीं, देवद्धि क्षमाश्रमरण ही हो सकते हैं । जैसा कि जयसिंह सूरिकृत धर्मोपदेश माला में गणधर और वाचनाचार्यों में देवद्धगरणी को ही प्रार्य जम्बू से २४वें आचार्य होना बताया है ।
यह कोई निरी कल्पना नहीं अपितु इस तथ्य की पुष्टि करने वाले अनेक प्रमाण हैं कि देवद्धगरणी क्षमाश्रमरण का ही दूसरा नाम देववाचक था । कर्मग्रन्थ की स्वोपज्ञ वृत्ति में देवेन्द्रसूरि ने अवधिज्ञान के भेद के विवेचन में नन्दीसूत्रगत पद का उल्लेख करते हुए कहा है :- “यदाह देवद्धि क्षमाश्रमरण: - " से किं तं अरणारगुगामियमित्यादि । " " - अर्थात् - नन्दीसूत्र में देवद्धि क्षमाश्रमण ने कहा है"वह अनानुगामी क्या है ? इत्यादि । यदि देववाचक और देवद्धि दो भिन्न प्राचार्य होते तो देवेन्द्रसूरि वस्तुतः देववाचक के स्थान पर देवद्धि क्षमाश्रमण को नन्दी सूत्र का रचनाकार नहीं बताते ।
फिर दूसरा प्रमारण यह है कि देववाचक यदि देवद्धि क्षमाश्रमरण से भिन्न कोई दूसरे ही श्राचार्य होते तो स्कन्दिलाचार्य की वाचना का प्रतिनिधित्व भी देववाचक को ही मिलना चाहिये था न कि देवद्धि क्षमाश्रमण को । परन्तु स्थिति इससे सर्वथा विपरीत है । यह एक सर्वसम्मत तथ्य है कि वल्लभी वाचना में नागार्जुनीया वाचना के प्रतिनिधि प्राचार्य नागार्जुन की परम्परा के उत्तराधिकारी प्राचार्य कालक (चतुर्थ) और स्कन्दिली ( माथुरी) वाचना के प्रतिनिधि श्रार्य स्कन्दिल की परम्परा के उत्तराधिकारी प्राचार्य देवद्धि क्षमाश्रमरण माने गये हैं । इससे यही प्रमाणित होता है कि देवद्ध क्षमाश्रमरण ही देववाचक हैं, भिन्न नहीं ।
मेरुतुंग की स्थविरावली में भी यह उल्लेख है कि देवद्धिगरणी ने सिद्धान्तों को विनाश से बचाने के लिये पुस्तकारूढ किया । २ इन्होंने अपनी स्थविरावली में भी पट्टक्रम का निर्देश करते हुए श्री भूतदिन्न, लोहित्य, दृष्यगणी और देवद्धिगणीइस प्रकार दृष्यगरणी के पश्चात् स्पष्टरूपेण देवद्धिगरणी का उल्लेख किया है ।
daa क्षमाश्रमरण की गुरु-परम्परा
देवद्धि क्षमाश्रमण की गुरु-परम्परा के विषय में इतिहासज्ञ एकमत नहीं हैं । कुछ विद्वान् कल्पसूत्र स्थविरावली के अनुसार देवद्धि को सुहस्ती शाखा के
१ (क) यदाह भगवान् देवद्ध क्षमाश्रमण :- नारणं पंचविहं पन्नत्तमित्यादि । यदाह देवद्धवाचक :- से कि तं मइनारणेत्यादि ।
(ख) यदाहुनिर्दलिताज्ञानसंभारप्रसरा देवद्धिवाचकबरा :
तं समासो चउविहं पन्नत्तमित्यादि । [ प्रा० देवेन्द्रसूरिकृत कर्मग्रन्थ-स्वोपज्ञवृत्ति ] २ श्री वीरादनु सप्तविंशतमः पुरुषो देवगिरिण. सिद्धान्तान् ग्रव्यवच्छेदाय पुस्तकाधिरूढानकार्षीत् ।
[मेरसंगीया येरावली, टीका, ५]
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