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चन्द्रगुप्त द्वितीय] सामान्य पूर्वधर-काल : मायं भूतदिन महत्त्वपूर्ण और प्रामाणिक होते हैं, यह एक सर्वसम्मत निर्विवाद तथ्य है। शिलालेखों में जहां किसी तथ्य का स्पष्ट उल्लेख हो, उसके समक्ष कम से कम किसी नाटक में किये गये उससे विपरीत उल्लेख का तो कोई महत्व नहीं। क्योंकि नाटकों में प्रायः अधिकांश कथावस्तु एवं पात्र कल्पित होते हैं, उनमें चरित्र चित्रण अतिरंजित, अतिशयोक्तिपूर्ण और कभी-कभी वास्तविकता से कोसों दूर रहता है। ऐसी स्थिति में केवल किसी नाटक में किये गये किसी उल्लेख के आधार पर ऐतिहासिक तथ्यों के निर्णय की प्रक्रिया को अपनाया जाने लगे तो इतिहास की प्रामाणिकता ही समाप्त हो जायगी। उदाहरण के तौर पर यदि "कौमुदी महोत्सव" नामक नाटक में तत्कालीन जनमनरंजन के लिये किये गये. उल्लेखों को ऐतिहासिक तथ्य के रूप में अंगीकार कर लिया जाय तो लिच्छिवी जाति के विशुद्ध क्षत्रियों को म्लेच्छ, लिच्छिवी राजकुमारी के साथ विवाह करने वाले चण्डसेन (चन्द्रगुप्त) को पाटलीपुत्र के मौखरी राजा सुन्दर वर्मन का दत्तकपुत्र और गुप्तवंश के राजाओं को कारसकर (कृषक) मानना पड़ेगा। नाटक की दृष्टि से 'कौमुदी महोत्सव' का महत्त्व हो सकता है पर ऐतिहासिक दृष्टि से नहीं, क्योंकि उसमें एक राजवंश से दूसरे राजवंश को नीचा दिखाने की भावना की गंध स्पष्टतः प्रकट होती है।
कुछ विद्वानों द्वारा इसी प्रकार के 'देवीचन्द्रगुप्तम्' नामक एक नाटक के प्राधार पर गुप्त सम्राटों को नामावली में समुद्रगुप्त और द्वितीय चन्द्रगुप्त के बीच में रामगुप्त का नाम जोड़ने का प्रयास किया गया है।
'देवीचन्द्रगुप्तम्' नामक नाटक ईसा की छटी शताब्दी की कृति अनुमानित की जाती है। यह नाटक मूल रूप में तो उपलब्ध नहीं होता पर उसके कतिपय उद्धरण 'नाट्यदर्पण' नामक ग्रन्थ में उपलब्ध होते हैं। इसके कर्ता के विषय में भी विद्वान् अभी तक अपना कोई निश्चित अभिमत नहीं बना पाये हैं। कुछ विद्वानों का अनुमान है कि संभवतः 'मुद्राराक्षस' नाटक का रचयिता विशाखदत्त ही इस नाटक का रचनाकार हो, पर इस अनुमान की अन्य किसी प्रकार से पुष्टि नहीं होती। विशाखदत्त ने अनेक नाटकों की रचना की, इस प्रकार का उल्लेख 'मुद्राराक्षस' नाटक में विद्यमान है।' यदि अधीन राजवंशोत्पन्न विशाखदत्त को 'देवीचन्द्रगुप्तम्' नाटक का रचनाकार मान लिया जाय तो इस सन्देह की पुष्टि होती है कि भारत के एक सुविख्यात एवं प्रतिष्ठित राजवंश को जनसाधारण की निगाहों में गिराने की भावना लिये किसी राजवंश का निहित स्वार्थ भरा हाथ इस नाटक की रचना के पीछे अदृष्ट रूप से अवश्य रहा होगा।
___ 'देवीचन्द्रगुप्तम्' नाटक के जो थोड़े बहुत उद्धरण उपलब्ध हैं, उनसे केवल निम्नलिखित सूचना प्राप्त होती है -
१. अपने प्रजाजनों के आश्वासन हेतु रामगुप्त ने अपनी महारानी ध्रुवदेवी
__ को शकराज की सेवा में समर्पित करना स्वीकार किया। 'कर्ता वा नाटकानामिममनुभवति क्लेशमस्मद्विषो वा।- मुद्राराक्षस ४॥३
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