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सामान्य पूर्वघर-काल : प्रायं भूतदिन भवभय को दूर करने वाले प्राचार्य भूतदिन को वन्दन करता है।" आपके शरीर की कान्ति तपाये हए कंचन के समान गौरवर्ण बताई गई है।'
.नंदी स्थविरावली की प्रक्षिप्त मानी जाने वाली गाथा में आपको तपसंयम में नित्य अनिविन, पंडितजन सम्मान्य और संयमविधिज्ञ कह कर वन्दन किया गया है। इससे भी आपकी श्रुतज्ञान के साथ गंभीर संयमनिष्ठा प्रकट होती है।
देववाचक द्वारा निर्दिष्ट इस प्रकार के विस्तृत परिचय से यह सहज ही प्रकट होता है कि प्राचार्य भूतदिन के प्रति देववाचक देवद्धिगरणी के हृदय में अत्यन्त श्रद्धा भक्ति थी। संभव है प्राचार्य भूतदिन्न देवद्धि की गुरु-परम्परा में हों पौर उनके साथ देवद्धि का साक्षात्कार भी हुआ हो।
युगप्रधान यन्त्र के अनुसार यदि इन्हों भूतदिन को युगप्रधान भी माना जाय तो उनका कार्यकाल इस प्रकार बताया गया है :
वीर नि० सं० ८६४ में जन्म, ८८२ में दीक्षा । वीर नि० सं०६०४ में युगप्रधान पद और ६८३ में स्वर्गगमन । इस प्रकार प्राप १८ वर्ष गृहवास, २२ वर्ष सामान्य साधुपर्याय और ७६ वर्ष युगप्रधान पद को भोग कर ११६ वर्ष को पूर्ण आयु में समाधिपूर्वक स्वर्ग के अधिकारी हुए।
मार्य नागार्जुन एवं भूतदिन के समय का राजवंश
चन्द्रगुप्त द्वितीय वीर नि० मं०६०२-६४१ (६० सन् ३७५-४१४) वीर नि० सं० ६०२ में समुद्रगुप्त की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र चन्द्रगुप्त द्वितीय विशाल गुप्त साम्राज्य का स्वामी बना। एरण की प्रशस्ति में गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त के अनेक पुत्रों एवं पौत्रों के होने का उल्लेख है। 3 जिस प्रकार समुद्रगुप्त के पिता (चन्द्रगुप्त प्रथम) ने अपने अनेक पुत्रों में से छोटे पुत्र समुद्रगुप्त को सर्वतः सुयोग्य समझकर अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था उसी प्रकार समुद्रगुप्त ' तवियवरकरणग चंपग-विमउल कमलगब्भसरिवने ।
भवियजगहियय दइए, दयागुणविसारए धीरे ।। ४३ ।। प्रड्ढभरहप्पमाणे, बहुविहसज्झाय सुमुरिणयपहाणे। अणुमोगियवरवसभे, नाइलकुलवंसनंदिकरे ।। ४४ ।। भूयहियप्पगब्भे, वंदेहं भूयदिनमायरिए । भवभयवुच्छेयकरे, सीसे नागज्जुणरिसोरणं ।। ४५ ।। [नंदीसूत्र स्थविरावली] २ तत्तो य भूयदिन्नं, निच्चं तवसंजमे अनिविण्णं । ___पंडियजणसम्माणं, वंदामो संजमविहिण्णु ॥ ४२ ॥ [नंदी स्थविरावली] 3 ....(धीर) स्य पौरुषपराक्रमदत्तशुक्ला, हस्त्यश्वरत्नधनधान्यसमृद्धियुक्ता । .....(यस्य)....गृहेषु मुदिता बहुपुत्र पौत्रसंक्रामणी कुलवधूः वतिनी निविष्टा ।। .
[एरण की प्रशस्ति]
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