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समुद्रगुप्त सामान्य पूर्वधर-काल : प्रार्य नागार्जुन दक्षिणापथ के अभियान में अनेक राजानों को बन्दी बनाया, अनेक राजाओं को बन्दी बनाकर पुनः मुक्त कर दिया एवं अनेक राजाओं पर कृपा कर उनका राज्य उन्हें लोटा दिया । दक्षिण-विजय के फलस्वरूप समुद्रगुप्त के राज्य विस्तार के साथ-साथ उसके प्रताप और कोषबल की भी अपूर्व वृद्धि हुई।
तृतीय विजय अभियान - अपने द्वितीय विजय अभियान द्वारा दक्षिणविजय के पश्चात् मगध में लौटने पर समुद्रगुप्त ने यह अनुभव किया कि उसका मगध राज्य वस्तुतः ऐसे राजामों से घिरा हना है, जिनके हृदय में उसकी श्री-अभिवृद्धि सदा शूल के समान चुभती रहती है। यदि वे सब संगठित हो जायं तो किसी भी समय उसके शासन के लिये संकट के बादल बन सकते हैं।
___इस संभावित संकट को सदा के लिये समाप्त कर डालने का दृढ़ संकल्प लिये उसने आर्यावर्त में दूसरी बार सैनिक अभियान किया। इस विजय अभियान में भीषण नरसंहार हुआ। लोमहर्षक युद्ध के पश्चात् समुद्रगुप्त का विजयश्री ने वरण किया । रुद्रदेव, मतिल, नागदत्त, चन्द्रवर्मा, गणपति नाग, नागसेन, अच्यु. तनन्दी, बलवर्मा आदि आर्यावर्त के राजाओं की पूर्ण पराजय हई।' - उपरोक्त तीन विजयाभियानों में समुद्रगुप्त ने पश्चिमी शकों के अतिरिक्त भारत के प्रायः सभी छोटे-बड़े दुर्दान्त राजाओं को युद्ध में परास्त कर एक सार्वभौम सत्ता सम्पन्न सुविशाल गुप्त साम्राज्य की स्थापना की। उसके प्रचण्ड प्रताप से अभिभूत हो समतट (ताम्रलिप्ति से पूर्व का समुद्र-तटवर्ती प्रदेश समतात). डवाक (आसाम का डबोक क्षेत्र), कामरूप (प्रासाम का गोहाटी जिला), नेपाल, कर्तपुर आदि राज्यों के राजाओं एवं मालव, अर्जुनायन, यौधेय, माद्रक, आभीर, प्रार्जुन, सनकानीक, काक तथा खरपरिकादि गणराज्यों ने करप्रदानादि से समुद्रगुप्त को संतुष्ट कर उसकी अधीनता स्वीकार की।
कवि हरिषेण ने उपरोक्त स्तम्भलेख में उकित करवाया है कि देवपुत्र शाहि, शाहानशाहि, शक, मुरुण्ड, ग्रादि विदेशी राजा तथा सिंहल आदि द्वीपों के शासक समुद्रगुप्त की सेवा में आत्मनिवेदन करते, अपनी कन्याएं भेंट में देते तथा अपने विषय एवं भुक्ति के लिये समुद्रगुप्त की गरुडांकित राजमुद्रा के चिन्ह से युक्त आज्ञाएं मांगते रहते थे । ' रुद्रदेवमतिलनागदतचन्द्रवर्मगणपतिनागनागसेन अच्युतनन्दि बलवर्मानेकार्यावर्त राजप्रसभोद्धरणोद्वत्तप्रभावमहतः, परिचारकीकृतसटिविक राजस्य...
[इलाहाबाद स्थित हरिषेण का स्तम्भलेख] २ समतटउवाककामरूपनेपालकनु पुरादिप्रत्यन्तनपतिभि: मालवा नायनयौधेयमाद्रकाभीर प्रार्जुनसनकानीककाकखरपरिकादिभिश्च सर्वकरदानाज्ञाकरणप्रणामागमनपरितोपित प्रचण्डशासनस्य.... ।
[वही]] 3 देवपुत्रशाहिशाहानुशाहि शक मुरुण्डः सहलकादिभिश्च सर्वद्वीपवासिभिरात्मनिवेदनकन्योपायनदान गमत्मदंकस्व विषयभुक्तिशासमयाचनाद्य पायसेवाकृत बाहुवीर्यप्रसरधरणिबन्धस्य...
[वही]
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