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मार्य ना के समय की] सामान्य पूर्वधर-काल : मार्य ब्रह्माद्वीपकसिंह
कनिष्क ने बौद्ध धर्म स्वीकार कर विजय का अभियान प्रारम्भ किया। इसने पाथियनों के शासन को भारत से मूलतः उखाड़ फेंका। काश्मीर-विजय के पश्चात् कनिष्क ने चीनी साम्राज्य के प्रदेशों - चीनी तुकिस्तान, काशगर, यारकन्द एवं खोतान पर अपना प्राधिपत्य स्थापित कर एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की। कनिष्क का साम्राज्य ईरान की सीमाओं से वाराणसी, चीनी, तुर्किस्तान से काश्मीर और दक्षिण में विन्ध्य-पर्वतश्रेणियों तक फैला हुआ था।' कनिष्क ने काश्मीर में अपने नाम पर कनिष्कपुर नामक एक नगर बसाया। उसने जन्मजात भारतीय की तरह भारतीय संस्कृति को अपनाया। उसने विदेशी होते हुए भी मोर्यसम्राट अशोक द्वारा अपनाई गई नीति का अनुसरण करते हुए बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में बड़ा योगदान दिया। कनिष्क ने काश्मीर के कुण्डलवन नामक स्थान पर बौद्ध - संगीति (बौद्ध भिक्षुत्रों, विद्वानों एवं बौद्ध धर्मावलम्बियों के धर्म-सम्मेलन) का आयोजन किया। उस संगीति में बौद्ध धर्म के प्रचार एवं उसमें नये सुधार से सम्बन्धित अनेक महत्वपूर्ण विषयों पर निर्णय लिये गये। इतिहासकारों का ऐसा अनुमान है कि कनिष्क द्वारा की गई उस बौद्ध-संयोति के पश्चात् बौद्धधर्म हीनयान और महायान - इन दो संप्रदायों में विभक्त हो गया। बुद्ध के निराडम्बर, सहज-सरल धर्म एवं जीवन-दर्शन को मानने वालों की संख्या स्वल्प थी प्रतः उन लोगों के संप्रदाय का नाम 'हीनयान' पड़ा। बुद्ध को भगवान् का अवतार मान कर उनकी मूर्ति की पूजा करनेवालों की संख्या अधिक थी मतः उन लोगों का संप्रदाय महायान कहा जाने लगा। कनिष्क ने महायान संप्रदाय को प्रश्रय दिया। कनिष्क के शासनकाल में बुद्ध को प्रतिमाओं की बड़े आडम्बर के साथ पूजा होने लगी और देश में मूर्तिकला का बड़ा विकास हुआ। कनिष्क बौद्ध धर्मावलम्बी था फिर भी उसने अन्य सभी धर्मावलम्बियों के साथ सौहार्दपूर्ण व्यवहार रखा।
कनिष्क के शासनकाल में संस्कृत साहित्य की उल्लेखनीय उन्नति हुई। उसके द्वारा सम्मानित महाकवि अश्वघोष ने 'बुद्धचरित्र', सौन्दरानन्दम्' एवं 'वज्रशूची' ' नामक उत्कृष्ट कोटि के संस्कृत-ग्रन्थों की रचनाएं की।
कनिष्क ने अपने विशाल साम्राज्य के शासन को सुचारु रूप से संचालित करने के लिये भारत के विभिन्न प्रदेशों में क्षत्रपियां स्थापित की थीं। उनमें से मथुरा, वाराणसी, गुजरात, काठियावाड़ एवं मालवा की क्षत्रपियों एवं उनके खरपल्लान वनस्फर प्रादि क्षत्रपों के उल्लेख उपलब्ध होते हैं।'
• शक्तिशाली कुषाणवंशी महाराजा कनिष्क के देश-विदेशव्यापी विजय अभियानों के संक्रान्तिकाल में भी कतिपय भारतीय राजाओं ने बड़े शौर्य और धैर्य के साथ अपना स्वतन्त्र अस्तित्व बनाये रखा। इसका ज्वलन्त उदाहरण है 1. His Empire in India included Kapisa, Gandhara and Kasmira and extended in the east upto Varanasi and beyond.
(The Gupta Empire, by Radhakumud Mookerji, p. 31 1. The Gupta Empire' dy Radhakumud Mookerji, p. 4.,
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