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जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [प्राचार्य मानदेव समाज में संभवतः विरला ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो अापके प्रभाव से अपरिचित हो।
नाडोल निवासी प्रख्यात श्रेष्ठी धनेश्वर आपके पिता और धारिणी माता थी। अपना एकमात्र पुत्र होने के कारण माता-पिता ने आपका नाम मानदेव रखा। एक बार प्राचार्य प्रद्योतन विहार क्रम से नाडोल पधारे। भाग्यवश मानदेव ने भी प्राचार्यश्री के उपदेशों को सुनने का सुअवसर पाया। प्राचार्य प्रद्योतनसूरि की वैराग्यपूर्ण वारणी सुनकर मानदेव को अपूर्व उल्लास हुप्रा और उन्होंने गुरुचरणों में प्रव्रज्या ग्रहण करने की इच्छा व्यक्त की। बड़ी कठिनाई से मानदेव ने माता-पिता से अनुमति प्राप्त की और शुभ समय में श्रमरण-दीक्षा अंगीकार कर वे विनयपूर्वक ज्ञानाराधन के साथ कठोर तप की साधना करने लगे। प्रखर प्रतिमा के कारण अल्प समय में ही उन्होंने ११ अंगश्रुत, मूल, छेद और उपांग श्रुतों का पूर्ण अभ्यास कर लिया।' ____ गुरु ने मानदेव को योग्य समझकर प्राचार्य पद से सुशोभित करना चाहा पर कहा जाता है कि लक्ष्मी (लावण्यश्री) और सरस्वती का आपस में एकत्र अद्भुत सम्मिलन देखकर गुरुदेव इस बात के लिए चिन्तित हुए कि मुनि मानदेव से चारित्र का पालन किस प्रकार निभ सकेगा।
गुरू की चिन्ता से मानदेव चारित्र के प्रति और अधिक आस्थावान् बन गये । गुरुदेव की प्रीति हेतु उन्होंने सम्पूर्ण रूप से विगइ-विकृति का परित्याग कर दिया और भक्तजनों के यहां से आहार लाना भी वन्द कर दिया। प्रात्मसाधना के प्रति सजगता विश्व को सहज ही झूका देती है। इस नियमानुसार मानदेव के चरणों में भी कुछ दैवी शक्ति का सामीप्य हो गया था, इस प्रकार के उल्लेख उपलब्ध होते हैं।
प्रार्य नागेन्द्र के समय की राजनैतिक एवं धार्मिक स्थिति
इससे पहले के प्रकरण में बताया जा चुका है कि आर्य रेवतीनक्षत्र के वाचनाचार्य काल में कुषाणवंश के राजा वेम कैडफाइसिस ने अपने पिता कुजुल कैडफाइसिस द्वारा ईरान की सीमा से लेकर सिन्धु नदी तक संस्थापित राज्य की सीमा में विस्तार करना प्रारम्भ किया। वेम ने पूरे पंजाब और दोबाबा को जीत कर पूर्व में वाराणसी तक अपने राज्य का विस्तार किया। वेम कैडफाइसिस की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र कनिष्क वीर निर्वाण की सातवीं शताब्दी के प्रथम चरण में तदनुसार शक सम्वत्सर के प्रचलित होने के पश्चात् राज्य सिंहासन पर आसीन हुअा। कनिष्क ने पुरुषपुर-पेशावर नामक एक नवोन नगर बसा कर वहाँ अपनी राजधानी स्थापित की। 'अंगकादशकेधीती, छेदमौलेषु निष्ठितः ।
उपांगेपु च निष्णातस्ततो जज्ञे बहुश्रुतः ॥२३॥ [प्रभावक चरित्र, प्रकरण१३]
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