________________
सम्राट् प्रवरसेन] सामान्य पूर्वघर-काल : प्रायं ब्रह्मद्वीपकसिंह
६४३ के शासनकाल में प्रवरसेन ने अनेक विजय अभियान किये और भारत के सुविशाल भू-भाग पर अपना आधिपत्य स्थापित किया। अपनी विजयों के उपलक्ष में उसने ४ अश्वमेध किये और अपने आपको सम्पूर्ण भारतवर्ष का सम्राट घोषित किया। भारशिवों ने लम्बे समय तक कुषाणों के साथ युद्धरत रहकर भारत को विदेशी दासता से मुक्त किया। अपनी उन महान् विजयों के उपलक्ष में भारशिवों ने जो दश अश्वमेध किये, इससे यही प्रतीत होता है कि उन्होंने भारत से कुषारण शासन का पूर्णतः उन्मूलन कर दिया। ऐसी स्थिति में अनुमान किया जाता है कि प्रवरसेन . के समक्ष विदेशी शक्तियों के साथ संघर्ष करने का कोई अवसर ही उपस्थित नहीं हप्रा और उसने भारशिवों, अन्य राजाओं एवं गणराज्यों के साथ युदरत रहकर उन पर विजय प्राप्त की। प्रवरसेन के बड़े पुत्र गौतमीपुत्र का भारशिव वंशी राजा भवनाग की पुत्री से विवाह हुमा । पुराणों में प्रवरसेन के ४ पुत्र होने का उल्लेख है। ऐसा प्रतीत होता है कि प्रवरसेन से पहले ही उसके बड़े पुत्र गौतमी पुत्र की मृत्यु हो गई, जिसके परिणामस्वरूप प्रवरसेन का पौत्र रुद्रसेन (प्रथम). अपने दादा के पश्चात् वाकाटक साम्राज्य का अधिकारी बना। प्रवरसेन के शेष तीन पुत्र भी अन्य राज्यों के अधिकारी बने।
हबसेन प्रथम __ऊपर बताया जा चुका है कि रुद्रसेन (प्रथम) का ई० सन् ३४४ से ३४८ तक केवल ४ वर्ष ही शासन रहा । रुद्रसेन को अपने दादा से कांचनका का विशाल साम्राज्य और मातामह भवनाग से पुरिका का राज्य मिला था। समुद्रगुप्त ने इसे युद्ध में परास्त किया और इस प्रकार वाकाटक साम्राज्य के भग्नावशेषों पर गुप्त साम्राज्य का निर्माण हुआ। रुद्रसेन प्रथम के पश्चात् हुए वाकाटक वंश के अनेक राजा गुप्त साम्राज्य के करद रहे। . वाकाटक वंश के राजाओं का शासनकाल इस प्रकार है :१. विन्ध्यशक्ति प्रथम
ई० सन् २४८ से २८४ २. प्रवरसेन प्रथम (गौतमीपुत्र)
,,, २८४ से ३४४ ३. रुद्रसेन प्रथम (भारशिवराज भवनाग का दौहित्र) , , ३४४ से ३४८ ४. पृथ्वीषेण प्रथम
., ३४८ से ३७५ ५. रुद्रसेन द्वितीय (चंद्रगुप्त द्वितीय का जामाता) , ३७५ से ३९५ ६. दिवाकरसेन की अभिभाविका प्रभावती गुप्ता . , , ३६५ से ४०५ ७. दामोदरसेन की अभिभाविका प्रभावती गुप्ता , ४०५ से ४१५ ८. प्रवरसेन द्वितीय
,, ४१५ से ४३५ ' यक्ष्यन्ति वाजपेयश्च, समाप्तवरदक्षिणः ।... ||३७४।।
. वायुपुराण, अध्याय ६६] २ .तस्य पुत्रास्तु चत्वारो, भविष्यन्ति नराधिपाः ॥३७४॥
. [बही] १ समुद्रगुप्त की विजयों का हरिषेण हारा तैयार करवाया गया इलाहाबाद स्थित स्तम्भलेख ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org