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वाकाटक राजवंश] सामान्य पूर्वधर-काल : प्रायं ब्रह्मदीपकसिंह
"ततः कोलिकिलेभ्यश्च, विन्ध्यशक्तिर्भविष्यति ।" इस श्लोकाधं से यह प्रकट होता है कि भारशिव नागों के साथ विन्ध्यशक्ति का अति सन्निकट का सम्बन्ध था। भारशिव भी नागवंशी थे और विन्ध्यशक्ति भी नागवंश की किसी शाखा विशेष में उत्पन्न हुया था। संभव है वह नागवंश की शाखा वाकाटक नाम से विख्यात किसी ग्राम, स्थान अथवा प्रदेश विशेष की रहने वाली हो अत: भारशिव आदि अन्य नागवंशियों से अपनी भिन्नता अभिव्यक्त करने के लिये विन्ध्य- . शक्ति एवं उसके वंशजों ने अपनी शाखा का नाम वाकाटक रखा हो।
उपरिंलिखित श्लोकांश के आधार पर ही संभवतः कतिपय इतिहासज्ञ अपनी यह मान्यता अभिव्यक्त करते हैं कि विन्ध्यशक्ति वस्तुतः भारशिवों की सेना का सर्वोच्च अधिकारी था और उसने विन्ध्य प्रदेश में अपनी पृथक राजसत्ता स्थापित कर उसका विस्तार किया अतः विन्ध्य से नवोदित शक्ति के रूप में वह विन्ध्यशक्ति के नाम से विख्यात हुआ। उपरोक्त श्लोकपद से यह तो निर्विवादरूपेण सिद्ध होता है कि भारशिव नागवंश से ही वाकाटक राजवंश उदित हुप्रा ।
। जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है वाकाटक राजवंश के अनेक राजाओं के सिक्के, शिलालेख आदि उपलब्ध होते हैं किन्तु इस राजवंश के संस्थापक विन्ध्यशक्ति के न तो कोई सिक्के ही उपलब्ध हुए हैं और न अभिलेखादि ही। ऐसी स्थिति में विन्ध्य शक्ति के सत्ताकाल को सुनिश्चित करने के लिये अन्य प्रमाणों का सहारा लेना होगा। ..
__ भारशिव वंश के सातवें राजा भवनाग की पुत्री का विवाह वाकाटक सम्राट प्रवरसेन (विन्ध्यशक्ति के पुत्र) के पुत्र गौतमी पुत्र के साथ तथा गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त (द्वितीय) की पुत्री प्रभावती गुप्ता का पाणिग्रहण वाकाटक नृपति पृथ्वीषेण (प्रथम) के पुत्र रुद्रसेन द्वितीय के साथ हुआ। इन तथ्यों के परिप्रेक्ष्य में इन तीनों राजवंशों के सत्ताकाल पर विचार करने पर यह अनुमान किया जाता है कि वाकाटक राजवंश का संस्थापक विन्ध्यशक्ति भारशिव राजवंश के चौथे राजा त्रयनाग तथा गुप्त राजवंश के संस्थापक राजा श्रीगुप्त का गमकालीन था। पुराणों में विन्ध्यशक्ति का शासनकाल जो ६६ वर्ष बताया गया है, वह वस्तुतः वाकाटकों का साम्राज्यकाल है। उसमें ३६ वर्ष विन्ध्य शक्ति का और ६० वर्ष प्रवीर अर्थात् प्रवरसेन का राज्य, इस प्रकार १६ वर्ष का वाकाटकों का साम्राज्यकाल बताया गया है। प्रवरसेन के पश्चात् उसके पौत्र रुद्रसेन प्रथम (भवनाग के दोहित्र) और उसके पश्चात् पृथिवीषेण प्रथम- इन दो वाकाटक राजापों का शासनकाल ज्ञात करना अवशिष्ट रह जाता है। प्रथिवीषेरण प्रथम का पुत्र रुद्रसेन द्वितीय, गुप्तसम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय का जामाता था। चन्द्रगुप्त द्वितीय ई० सन् ३७५ में ' "समा:पण्णवति मात्या, पृथिवीं च समेष्यति ॥३६॥
(बापुपुराण, अनुषंगपादतमाप्ति विन्ध्यशक्तिसुताचापि, प्रवीरो नाम बीर्यवान् । मोरयन्तिपसमा पष्टि पूरी कांचनको ॥३७३॥
· [वही]..
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