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जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [भारतियों की शाखाएं भारशिववंश की तीन शाखाएं मानी गई हैं। उनके राजाओं के नाम इस . प्रकार हैं :
१. कान्तिपुरीको मुख्य शाखा १. नवनाग
५. बहिननाग २. वीरसेन ६. चरजनाग ३. हयनाग
७. भवनाग ४. अयनाग ८. वाकाटक राजा रुद्रसेन (भवनाग का दौहित्र)
जिसको भवनाग ने पुरिका का राज्य दिया।
- २. पद्मावती शाखा १. भीमनाग . ४. व्याघ्रनाग २. स्कन्दनाग ५. देवनाग ३. बृहस्पतिनाग ६. गणपतिनाग (इसके सिक्के बहुत बड़ी संख्या
में मिले हैं) गणपतिनाग के पश्चात् संभवंतः पद्मावती शाखा में नागसेन नामक राजा हुमा जिसे कवि हरिषेण के इलाहाबाद स्थित स्तम्भ लेख के अनुसार समुद्रगुप्त ने अपने पहले विजय अभियान में ही पराजित एवं अपदस्थ किया। महाकवि बाण ने भी 'हर्षचरित्र' में नागसेन को पद्मावती का राजा बताते हुए उसकी मूर्खता का उल्लेख किया है।
३. मयुरा शाखा मथुराशाखा के राजाओं के नाम उपलब्ध नहीं होते।
वाकाटक राजवंश का अभ्युदय गुप्त राजवंश के उत्कर्ष से पूर्व भारत के बहुत बड़े भूभाग पर वाकाटक राजवंश का विशाल साम्राज्य था। अर्जुनायन, माद्रक, यौधेय, मालव प्रादि गणराज्य तथा पंजाब, राजपूताना, मालवा, गुजरात मादि प्रान्तों के प्रायः सभी राजा वाकाटक साम्राज्य के करद एवं अधीनस्थ थे। पुराणों में वाकाटक राजवंश को विध्यक के नाम से ही अभिहित किया गया है। वाकाटक राजवंश के अनेक सिक्के, शिलालेख एवं ताम्रपत्र उपलब्ध होते हैं। प्रजन्ता के गुहाचित्रों एवं अभिलेखों से भी वाकाटक राजवंश के इतिहास पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है ।
इतिहासज्ञों ने विन्ध्यशक्ति नामक नाग को वाकाटक राजवंश का संस्थापक माना है। पुराणों में कोलिकिल वृषों (भारशिवों) में से इस राजवंश के संस्थापक विष्यशक्ति का अभ्युदय बताया गया है । 'विन्ध्यकानां कुले तीते...
॥३७३॥ [वायुपुराण, अध्याय ९६] २ तच्छन्नेन च कालेन, ततः कोसिकिमा वृषाः ॥३६६॥ ततः कोलिकिलेम्यश्च, विन्ध्यशक्तिमविष्यति ।...॥३६॥
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