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सामान्य पूर्वधर-काल : प्राचार्य रक्षित
रक्षित ने बड़ी जिज्ञासापूर्वक दृष्टिवाद और उसके ज्ञाता प्रादि के सम्बन्ध में अपनी माता से अनेक प्रश्न किये और माता ने पुत्र की जिज्ञासा को शांत करते हुए कहा - "पुत्र ! इक्षुवाटिका में प्राचार्य तोषलिपुत्र विराजमान हैं, वे दृष्टिवाद के ज्ञाता हैं।"
"कल ही मैं उनके पास अध्ययनार्थ चला जाऊंगा।" - यह कह कर रक्षित ने माता को आश्वस्त किया और दूसरे दिन प्रातःकाल होते ही माता की माज्ञा ले वह दशपुर से इक्षुवाटिका की ओर प्रस्थित हुमा ।
नगर से बाहर निकलते ही रक्षित को सामने की ओर से प्राते हए एक वृद्ध सज्जन मिले जो सोमदेव के बालसखा थे। यथोचित अभिवादनादि के पश्चात् रक्षित का परिचय मिलते ही आगन्तुक वृद्ध ने हर्ष प्रकट करते हुए कहा- "पुत्र मैं तुम्हें देखने के लिए ही आया हूँ । लो, मैं तुम्हारे लिए यह सौगात लाया हूँ।"
यह कह कर वृद्ध ने ६ पूर्ण और एक आधा इस तरह साढ़े नौ इक्षुदण्ड रक्षित की ओर बढ़ाये।
रक्षित ने विनम्र स्वर में वृद्ध से कहा- "तात ! मैं अध्ययनार्थ बाहर जा रहा है। प्राप घर पधारें, ये इक्षयष्टियां माता को ही दे दें और कह दें कि रक्षित मुझे मिल गया था।" . इस प्रकार आगन्तुक से थोड़ी देर तक बात करने के पश्चात् रक्षित अपने गन्तव्य स्थान की ओर आगे बढ़ा।
इक्षुवाटिका पहुँचने के पश्चात् रक्षित यह सोचते हुए उपाश्रय के बाहर ही खड़ा हो गया कि आचार्य के पास किस प्रकार जाना और अभिवादन करना चाहिये । रक्षित इस प्रकार सोच ही रहा था कि एक श्रावक उपाश्रय के अन्दर से आया और दैहिकचिन्ता से निवृत्त हो पुनः उपाश्रय में लौटने लगा। रक्षित ने भी तत्क्षण उस श्रावक का अनुसरण करते हुए उपाश्रय में प्रवेश कर प्राचार्य तोषलिपुत्र को विधिपूर्वक उसी तरह प्रणाम किया जिस प्रकार कि उस श्रावक ने किया।
प्राचार्य ने नवागन्तुक को यथाविधि वंदन करते हुए देखकर पूछा- "वत्स तुमने यह धर्मक्रिया का ज्ञान कहां से पाया?"
आर्य रक्षित ने उस श्रावक की ओर इंगित करते हुए कहा - "इनसे ।"
तदनन्तर प्राचार्य द्वारा आगमन का कारण पूछने पर रक्षित ने विनयपूर्वक निवेदन किया- "भगवन् ! मैं दृष्टिवाद का अध्ययन करने के लिए पापकी सेवा में पाया है।"
आचार्य द्वारा यह कहने पर कि दृष्टिवाद का ज्ञान तो दीक्षित होने पर हो दिया जा सकता है, रक्षित तत्काल दीक्षा ग्रहण करने के लिए सहर्ष उबत हो गया। श्रमण-दीक्षा ग्रहण करने के पश्चात रक्षित मुनि ने अपने गुरु तोषलिपत्र से निवेदन किया- "भगवन् ! यहां के राजा का और सभी नागरिकों का मेरे
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