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६०६ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [शालिवाहन शाक-संवत्सर किसी देश पर आक्रमण करते तो टिड्डी दल की तरह तूफानी आक्रमण करते थे। उनके स्वभाव में स्वेच्छाचारिता और अहं का प्राधिक्य होने के कारण उनका शासन बड़ा ही कर्कश और उनके द्वारा विजित राष्ट्र पर किये जाने वाले प्रत्याचार बड़े ही लोमहर्षक होते थे। ईरान की जनता शकों की दासता से मुक्त होने के लिये स्वल्पकाल में ही छटपटाने लगी। ईरान के प्राचीन राजवंश ने ईरान से शकों के शासन को समाप्त करने का बीड़ा उठाया और वहां के शाह ने एक लम्बे संघर्ष के पश्चात् शकों की शक्ति को छिन्न-भिन्न कर ईरान में एक सशक्त साम्राज्य. की स्थापना की। ईरान में अपने प्रति भीषण असंतोष और प्रतिकार की भावना की तीव्र लहर देखकर शकों ने भारत के सिन्ध प्रदेश की ओर अपना सैनिक अभियान किया और उन्हें सिन्ध के कुछ भाग पर अधिकार करने में सफलता भी मिल गई।
उन्हीं दिनों अपनी बहिन सरस्वती साध्वी को गर्दभिल्ल के अन्तःपुर से मुक्त कराने के प्रश्न को लेकर कालकाचार्य द्वितीय ने सिन्ध के शकों की सहायता प्राप्त की और कालकाचार्य के बुद्धिकौशल एवं भड़ोंच के शासक बलमित्र भानुमित्र की सहायता से शकों ने गर्दभिल्ल को परास्त कर अवन्ती राज्य पर अधिकार कर लिया। प्रवन्ती राज्य पर शकों का शासन कठिनाई से चार वर्ष ही चल पाया था कि गर्दभिल्ल के पुत्र विक्रमादित्य ने शकों को पराजित कर प्रवन्ती राज्य पर पुनः अधिकार कर लिया।
- यह भी पहले बताया जा चुका है कि वीर नि० सं० ५३० में महाराज विक्रमादित्य की मृत्यु के अनन्तर शकों ने पुनः भारत पर प्रबल आक्रमण प्रारम्भ किये और उन्होंने भारत के पश्चिमोत्तर प्रदेशों के अनेक भागों पर अधिकार कर लिया। उन्हीं दिनों पार्थियन जाति के विदेशी आक्रान्ता भी ईरान होते हुए भारत में पाये । पाथियन राजा गोंडोफरनीज ने तक्षशिला पर अधिकार कर लिया। उसने अपने राज्य की सीमा में उल्लेखनीय अभिवृद्धि की और अनेक प्रदेशों में अपनी क्षत्रपियां स्थापित की। .. सातवाहनवंशी राजा पुलोमावि (प्रथम) के शासनकाल में पश्चिमी क्षत्रपों के वंश के संस्थापक चष्टन का प्राबल्य बढ़ा। उसने पुलोमावि के राज्य के कुछ प्रदेशों पर अधिकार कर उज्जयिनी पर भी अपना प्राधिपत्य स्थापित कर लिया। चष्टन के पौत्र रुद्रदामा ने अपनी पुत्री का विवाह पुलुमावि के साथ किया । कुछ काल पश्चात् किसी कारणवश श्वसुर जामाता के बीच युद्ध ठन गया। उस युद्ध में पुलुमावि का पराजय ने और रुद्रदामा का विजयश्री ने वरण किया।
शकों की बढ़ती हुई शक्ति को प्रतिष्ठान के सातवाहनवंशी शासकों ने समय समय पर क्षीण करने का प्रयास किया ।
वीर नि० सं० ५५२ के प्रासपास. यूबी जाति के विदेशी कुषाणों ने भारत ...में बने हुए पापियन जाति के विदेशियों को पराजित कर अफगानिस्तान और
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