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तत्का० राजन० स्थिति] सामान्य पूर्वधर-काल : प्रायं रेवती नक्षत्र
६२६ माध्यमिका (मज्झिमा) और मथुरा को अपने अधिकार में करता हुआ वह मागे बढ़ा । सिन्धु (संभवतः कालीसिन्ध) नदी के दक्षिण तटवर्ती किसी स्थान पर पुष्यमित्र के पौत्र वसुमित्र ने मेनेण्डर को भयंकर युद्ध के पश्चात् बुरी तरह परास्त किया। इस करारी हार के पश्चात् यूनानियों का राज्य केवल पंजाब और भारत के पश्चिमोत्तर सीमावर्ती कुछ प्रदेशों तक ही सीमित रहा ।।
इसी समय शकों ने भारत के पश्चिमोत्तर प्रदेशों पर प्राक्रमण कर वहां. से यूनानियों की सत्ता को समाप्त कर दिया। शकराज मोगा अपरनाम मोस प्रथम ने शैव धर्म अंगीकार किया और उसने कतिपय वर्षों तक गान्धार (अफगानिस्तान) तथा पंजाब पर राज्य किया। इसके पश्चात् शकों ने उत्तर प्रदेश, राजपूताना और कुछ दक्षिणी प्रदेशों तक अपने राज्य का विस्तार किया। शकों ने भारत के अनेक प्रदेशों में अपनी क्षत्रपियां स्थापित की। उनमें से मथुरा की क्षत्रपी का राजुल नामक शासक एक शक्तिशाली क्षत्रप हुआ, जिसके अनेक सिक्के उपलब्ध होते हैं।
वीर निर्वाण की छठी शताब्दी के प्रथम चरण की समाप्ति के अनन्तर, तदनुसार ईसा की प्रथम शताब्दी के प्रारम्भकाल में पार्थियनों ने ईरान के अनेक प्रदेशों पर अधिका करने के पश्चात् भारत पर आक्रमण किया। इनका शकों के साथ संघर्ष हुमा। पाथियनों ने शकों को परास्त कर भारत के पश्चिमोत्तर सीमावर्ती क्षेत्रों एवं पंजाब पर अधिकार कर लिया। इसके परिणामस्वरूप शकों का राज्य भारत के दक्षिण-पश्चिमी सौराष्ट्र प्रादि प्रदेशों में ही रह गया। पाथियनों ने पंजाब.पर अधिकार करने के पश्चात् अपने राज्य का विस्तार करना प्रारम्भ किया। गोंडाफरनीज नामक पाथियन शासक ने तक्षशिला, मथुरा उज्जयिनी प्रादि में अपनी क्षत्रपियां स्थापित की। थोड़े समय पश्चात् ही अधिकांश पाथियन क्षत्रपों ने अपने आपको स्वतन्त्र घोषित कर दिया। इसके परिणाम स्वरूप पार्थियनों का शक्ति विकेन्द्रित होने के कारण शनैः शनैः क्षीण होती गई।
___ यह उल्लेखनीय है कि प्रायः सभी पार्थियन एवं शक शासकों ने भारतीय धर्म स्वीकार कर भारतीय संस्कृति को विकसित-पल्लवित करने के बड़े प्रयास किये। उन लोगों ने पूर्णतः भारतीय शासन-प्रणाली के अनुसार राज्य करते हुए अनेक जनहित के कार्य किये।
- अब तक किये गये उल्लेखों से यह तो स्पष्ट ही है कि भारत पर जब जब भी विदेशी आक्रान्ताओं ने प्राक्रमण किये, तब-तब भारत के गरण राज्यों, राजाओं और जनता ने उन विदेशी शक्तियों के साथ बड़ी बीरता से युद्ध किया। यद्यपि भारत में सुदृढ़ केन्द्रीय राज्यसत्ता के प्रभाव और विदेशियों की सुसंगठित
मालविकाग्निमित्र (कालीदास)। : .2 The Gupta Empire by Shri.Radhakumud Mookerji, page 3 ३.बही, page 4
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