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सामान्य पूर्वधर-काल : मायं ब्रह्मद्वीपकसिंह
६३१ २० (२४) ब्रह्मद्वीपकसिंह-वाचनाचार्य वाचनाचार्य प्रार्य रेवतीनक्षत्र के पश्चात् आर्य ब्रह्मद्वीपकसिंह २०वें वाचनाचार्य हए। चौबीसवें युगप्रधानाचार्य प्रार्य सिंह के साथ नाम साम्य होने के कारण वाचनाचार्य प्रार्य ब्रह्मद्वीपकसिंह और यूगप्रधानाचार्य सिंह को अधिकांश लेखकों द्वारा एक ही प्राचार्य मान लिया गया है। वाचनाचार्य सिंह के नाम के पहले 'ब्रह्मद्वीपक' विशेषण से यह अनुमान किया जाता है कि युग-प्रधानाचार्य सिंह से प्राप भिन्न और पूर्ववर्ती प्राचार्य हैं ।
२३वे युगप्रधानाचार्य रेवतीमित्र के पश्चात् होने वाले २४वें युगप्रधानाचार्य प्रार्य सिंह २०वें वाचनाचार्य ब्रह्मद्वीपसिंह से भिन्न हैं अथवा नहीं, यह एक गवेषणा का विषय है, क्योंकि दोनों भिन्न-भिन्न न होकर एक ही होते तो वाचनाचार्य सिंह और युगप्रधानाचार्य सिंह की भिन्नता बताने वाला 'ब्रह्मद्वीपक' विशेषण वाचनाचार्य सिंह के नाम के साथ नहीं जोड़ा जाता। आशा है विद्वान् गवेषक इस सम्बन्ध में शोध कर प्रकाश डालेंगे।
आर्य ब्रह्मद्वीपकसिंह का परिचय प्रागे आर्य सिंह के साथ प्रस्तुत किया जा रहा है।
२२. आर्य नागेन्द्र (नागहस्तो)-युगप्रधानाचार्य प्रार्य वज्रसेन के पश्चात् यूगप्रधान परम्परा में नागहस्ती का नाम आता है। नागेन्द्र सोपारकपुर के श्रेष्ठी जिनदत्त के दोक्षित चार पुत्रों में सबसे ज्येष्ठ थे। युगप्रधानों की नामावलि में आर्य नागेन्द्र का प्रार्य नागेन्द्र नाम से उल्लेख न कर नामसाम्य-तन्य त्रुटि से नागहस्ती के नाम से उल्लेख किया गया है। वस्तुतः युगप्रधान नागेन्द्र वाचक आर्य नागहस्ती से सर्वथा भिन्न प्रतीत होते हैं। दुष्षमाकाल श्रमणसंघस्तोत्र के अनुसार नागेन्द्र का दीक्षाकाल ५६२-६३ माना गया है। किंचिन्यून १० पूर्वधर होने से प्रार्य नागेन्द्र ही वनसेन के पश्चात् युगप्रधानाचार्य नियुक्त किये गये। ६६ वर्ष जैसे सुदीर्घ काल तक आपने युगप्रधानाचार्य पद से जिनशासन की सेवा की। वीर नि० सं०,६८६ में इनका स्वर्गवास माना गया है।
पहले यह बताया जा चुका है कि प्रार्य नागहस्ती और नागेन्द्र - दोनों, दो भिन्न-भिन्न प्राचार्य हैं। प्राचार्य नागहस्ती वाचकवंश परम्परा के प्राचार्य हैं और उनके गुरू मार्य नन्दिल माने गये हैं जबकि नागेन्द्र युगप्रधान परम्परा के प्राचार्य पौर वज्रसेन के शिष्य हैं। पहले वनसेन के पूर्ववर्ती प्राचार्य हैं तो दूसरे वज्रसेन के पश्चाद्वर्ती उनके उत्तराधिकारी। वाचक नागहस्ती और यूगप्रधान नागेन्द्र की भिन्नता इस तथ्य से भी प्रमाणित होती है कि आर्य नागहस्ती का दिगम्बर परम्परा के साहित्य में भी यतिवृषभ के गुरु रूप से उल्लेख किया गया है पर मार्य नागेन्द्र को संशयमिथ्यादृष्टि, श्वेताम्बर प्रादि विशेषणों से अभिहित किया गया
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